कुछ तो लोग कहेंगे ....




बचपन में एक कथा सुनी थी शिव, पार्वती और उनके वाहन नंदी बैल के बारे में.

कथा यूँ है की एक बार ये तीनो धरती पर मानव रूप में हालात  का जायजा लेने के लिए आए.

एक गांव से तीनो जा रहे थे तो कुछ लोगों ने उन्हें देख कर कहना शुरू कर दिया ,’देखो कैसे लोग है,साथ में वाहन (यानी नंदी बैल) है पर फिर भी पैदल चल रहे है.’. उनकी बातें सुनकर दोनों लोग (शिव-पार्वती) नंदी पर सवार हो गए.  कुछ ही दूर चले होंगे की उन्हें फिर लोगों के बोल सुने पड़े, ‘अरे कैसे जालिम लोग है, बूढ़े बैल पर दो- दो लोग सवार है, बेचारे को मार ही डालेंगे. चलो औरत सवारी करे तो ठीक, मर्द को बैल पर बैठने की क्या जरूरत.’

इस पर शिवजी ने सोचा –शायद इनकी बात में दम है और वो बैल से उतर कर पैदल चलने लगे. थोड़ी देर में फिर उन्हें लोगों के कमेन्ट मिलाना शुरू हो गए (लोग और कुछ दे न सके पर कमेन्ट जरूर मुफ्त में देकर आनंदित होते है वो भी खूब सारे).’ देखो कितनी बेशर्म औरत है, बूढा पति पैदल चल रहा है और खुद बैल पर बैठी है.क्या जमाना आ गया है !’ ये साब सुनकर पार्वती उतर गयी और जिद करके शिव को बैल पर बैठा दिया. अब कमेन्ट सुनाने की बारी शिव की थी,’कैसा मर्द है, नाजुक औरत को पैदल चला रहा है और खुद सवारी कर रहा है. घोर कलयुग आ गया है .’ भोले शिव को क्रोध आ गया और उन्होंने नंदी बैल को अपने कंधे पर उठा लिया. पर लोगो को चैन कहाँ! बोलने लगे,’ कैसा पागल इंसान है,बैल की सवारी करने की बजाय उसकी सवारी बन रहा है.’

कहानी का सार ये कि आपको अपने फैसले लोगों की बातों में ही आकर नहीं कर देने चाहिए. आप सबको किसी भी हाल में खुश नहीं कर सकते.

लोग अगर आपकी आलोचना कर रहे है तो आपका प्रयास उन्हें खुश करने का नहीं होना चाहिए, जिससे वे आलोचना करना बंद कर दें. इन लोगों को धन्यवाद करके इसको एक मौके कि तरह देखना चाहिए और हमारा प्रयास अपने फैसले को एकबार फिर जांचने का होना चाहिए. फैसला अगर खरा होगा तो हर बार जांचने पर सही ही दिखाई देगा. अपना फैसला लेने वाले आप ही अंतिम व्यक्ति होने चाहिए .अपनी यह ताकत दूसरों के हाथो में दे देना तो मूर्खता होगी.  अपने बारे में सबसे सही जानकारी तो आपको होनी चाहिए और अपने फैसलों को निभाना भी तो आपको ही है.

लोगों का क्या है. उन्हे आपकी जरूरतों और मजबूरियों का क्या गुमान ! वो तो कुछ भी कह गुजरेंगे. किसी शायर ने क्या खूब कहा है, ‘कुछ तो लोग कहेंगे, लोगो का काम है कहना..’

कुछ तो गुंजाइश रखें

एक बार मुझे अपने एक मित्र के साथ रेल से कहीं  जाना जाना था. हमेशा की तरह मैं रेल छूटने के समय से करीब आधा घंटा पहले स्टेशन पहुँच गया. इस बार इस कार्यवाही को अंजाम देने में मुझे काफी मशक्कत करनी पडी क्योंकि मित्र महाशय बड़े आरामखोर थे . मुझे उन्हें झिझोडकर जगाना पड़ा, नाश्ता उनके मुंह  में ठूसना पड़ा और लगभग खींच कर उन्हें घर से बाहर तक लाना पड़ा.
स्टेशन पहुँच कर मित्र महोदय बोले,' यार, क्यों इतनी जल्दी मचा रखी थी? अभी आधा घंटा बचा है.में तो हर बार ठीक समय पर ही स्टेशन पहुंचता हूँ. इतना समय स्टेशन पर क्यूँ बर्बाद करना.'
मैंने जबाब दिया, 'भाई ,अगर रास्ते मै कुछ परेशानी आ जाती तो? कुछ तो गुंजाइश रखनी थी.'
मित्र ने मुस्कुराते हुए सवाल किया, आज तक जिन्दगी में रेल पकड़ते वक्त कितनी बार तुम्हारे रास्ते में कोई परेशानी आई ?
मैंने सोच कर जबाब दिया, ४ या ५ बार.'
उसने फिर पूंछा ,आज तक कुल कितनी बार रेल में यात्रा की होगी तुमने?'
मैंने मन ही मन हिसाब लगाया - पिछले ३० सालों से हर साल ५० बार तो यात्रा हो ही जाती होगी .
'१५०० बार', मैंने कहा.
इस पर मित्र महाशय बोले,' तुमने ७५० घंटे (१५०० बार के लिए हर बार आधा घंटे के सिसाब से) का समय जो करीब एक महीने से भी ज्यादा होता है उसे बर्बाद कर डाला महज ४/५ बार की परेशानी से बचने के लिए. ये बेबकूफी नहीं है क्या?
उस वक्त तो में उन्हें कोई उत्तर न दे सका पर बाद में मैंने इस गणित पर विचार किया.
किसी भी प्रोजक्ट की योजना बनाते समय और उसे अंजाम देते समय भी इंजीनियरिंग  की गणनओं  के बाद भी कुछ तो गुंजाइश रखी ही जाती है.
पर सवाल यह है कि ये गुंजाइश कितनी हो?

मेरा अपना मानना है कि यह इस बात पर निर्भर करता है कि उस घटना के न होने की दशा में नुकसान कितना है.
अगर इससे होने वाला नुकसान मेरे लिए मायने रखता है तो निश्चित ही मैं गुंजाइश की मात्रा अधिक रखूँगा  चाहे  इसके  लिए मुझे किसी परेशानी का सामना क्यों न करना पड़े.

गणित जरूरी है पर जीवन को गणित मै बंधा नहीं जा सकता.

मेरे कहने का यह मतलब हरगिज यह नहीं है कि मेरा मित्र गलत था. बस उसके गुंजायश रखने की मात्रा मेरे से बहुत कम थी.जहाँ में ३० मिनट का गुंजायश रखने  का आदी हूँ वहां उसके लिए एक या दो मिनट बहुत थे. इसका कारण था उसका मुझसे कहीं अमीर होना. मैं जानता था कि अगर उसकी रेल छुट भी गयी तो उसे बहुत कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला. वो टेक्सी या हवाई जहाज में बैठ कर समय से पहुँच ही जायेगा.

पर मैं गरीब इतना खर्चा नहीं उठा सकता.
इसी लिए तो इतनी गुंजायश रखता हूँ.

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