चमत्कार की आस



प्रधान मंत्री डाक्टर मनमोहन सिंह को विपक्ष और मीडिया द्वारा ‘सबसे कमज़ोर प्रधान मंत्री’, ’कठपुतली’, ‘बेईमान नेताओं का ईमानदार नेता’ आदि की पदवियों से नवाज़ा जाता रहा है. अगर इनके अंदर ताकत का इंजेक्शन डाल कर उन्हें हिटलर सरीखा ताकतवर भी बना डालें तो क्या कुछ अनहोनी घट जायेगी? इस देश ने इंदिरा गांधी और अटलबिहारी जैसी ताकतवर शक्सियतो को भी अज़माकर बाहर का रास्ता दिखाया है.

समस्या ये है कि सब सोचतें हैं कि देश पर कोई भी समस्या आते ही प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठा शख्स जादू की छड़ी घुमा कर सब कुछ ठीक कर देगा और वित्त मंत्री की कुर्सी पर बैठा व्यक्ति बज़ट नाम का पिटारा खोल कर महगाई के नाग को झट से बस में कर लेगा.

हम व्यक्तिगत रूप से खुद इस दिशा में कुछ नहीं करना चाहते.

इसी मनोदशा के चलते ताज्जुब नहीं अब भी कुछ विकसित देशों में भारत को संपेरो और मदारियों का देश समझते है.

काले धन से क्या होगा बाबा, काले मन का इलाज करो



बाबा रामदेव के नेतृत्व में हजारों करोड़ का काला धन देश में वापस लाने का मुहिम अपने शबाब पर है.

कल्पना कीजिये कि ये मुहिम अपने मकसद में कामयाब हो जाता है और ये हजारों करोड़ रुपया भारत सरकार के पास विदेशी बैंको से वापस आ जाता है. शायद उस साल के बजट में जनता पर कर (टेक्स ) न के बराबर होंगे और हर प्रदेश, हर शहर,हर गांव के खाते में अकल्पनीय धन राशी दे दी जायेगी विकास के लिए. पर इतना भर होने से हर प्रदेश, हर शहर,हर गांव का स्वरुप बदल जायेगा? सरकार के हाथों से ये पैसा निकल कर वास्तविक जरूरतमंदों के हाथों में जायेगा या उनके फायदे के लिए इस्तेमाल किया जायेगा? क्या इस पैसे को उसी सड़े- गले रास्ते से नहीं गुजरना होगा जिसमें हजारों छेद और पेंच है और फिर चोर- बेईमान लोग इसका फायदा उठा कर अपनी जेबें नहीं भर लेंगे?

कुछ लोग सोचते होंगे कि भ्रष्टाचार में लिप्त पकडे गए कुछ लोगों को कठोर सजा देने से बाकी लोग डर जायेंगे और इतने भर से ही भ्रष्टाचार बंद हो जायेगा. पर डर का असर तो आम आदमी पर ही ज्यादा होता है जो छोटी छोटी मछली है, वो मगरमच्छ जिन्हें इस नशे की लत पड़ चुकी है क्या ये डर उन्हें रोक सकेगा? महज डर की बुनियाद पर ज्यादा समय तक कोई व्यवस्था कायम नहीं रखी जा सकती.और अगर रख भी लें तो क्या इस माहौल में वास्तविक तरक्की हो सकती है?

मैं कोई निराशावादी विचार नहीं व्यक्त कर रहा हूँ . काले धन को वापस लाने की पहल मेरी नज़र में एक स्वागत योग्य कदम है, पर अपने आप में ये एक छोटी सी घटना मात्र है. इसके हो जाने और पकडे गए लोगों को सजा देने मात्र से कोई चमत्कार नहीं हो जायेगा. चमत्कार होगा सौ करोड़ लोगों के मिल कर काम करने से, चमत्कार होगा ऐसे अस्पताल, शिक्षा संसथान, कारखाने ,सड़क और रेल बनाने से जहाँ हर जरूरतमंद आसानी से जा सके. चमत्कार तब होगा जब अपनी कमाई का निश्चित हिस्सा सरकार को कर के रूप में देने पर मजबूरी नहीं आनंद और गर्व का अनुभव करे. चमत्कार होगा अगर सरकारी योजनाएं फाइलों में दम न तोड़े और आंकड़ों का मायाजाल लोगों को भ्रमित न करे.

काला धन मूल समस्या नहीं है. ये तो एक By product मात्र है . मूल समस्या है सरकार और व्यवस्था पर लोगों का विश्वास न होना. व्यवस्था अभी मरी तो नही है पर बस जैसे तैसे जिन्दा भर है और दुर्गन्ध दे रही है.

आदमी टेक्स की चोरी कब करता है? ऐसे हालत तब पैदा होते है जब उसे विश्वास हो कि टैक्स में दिया हुआ पैसा उसके या किसी आम आदमी के किसी काम नहीं आने वाला, फिर देने से क्या फायदा. पारदर्शिता और जबाबदेही (Accountability) में अपने देश का पिछडापन किसी से छुपा नहीं. इन क्षेत्रो में नए मानक मूल्यों के स्थापना की आज जरूरत है. इन क्षेत्रो में आज कारगर उपाय ढूंडने होंगे जिससे जनता का खोया विश्वास वापस आ सके.

बाबा रामदेव नें वर्षों पहले योग और और आयुर्वेद के चमत्कारिक प्रभावों से आम जनता का परिचय कराया था, पर आजकल उनका सारा ध्यान कुछ चोरों और बेईमानों को कोसने में ज्यादा रहता है. चंद लोगों को बलि का बकरा बना कर सजा देने से तमाशा तो खड़ा हो सकता है पर व्यवस्था नहीं बदलती. अगर व्यवस्था बदलना हो तो शायद योग की चमत्कारिक शक्ति के जरिये ये काम हो सके.

पर बाबा जी इस कालेधन के मकडजाल में उलझ कर एक नयी राजनेतिक पार्टी बना कर रह जायेंगे या एक योगीराज की तरह देश को दिशा देकर उसकी दशा बदल पाएंगे?

शायद समय ही इसका सही जबाब दे सके

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