ये कैसी आज़ादी ?



‘फूट डालो और राज करो’ की नीति पर अँगरेज़ तो दो सौ साल राज करके चले गए पर उनकी इस नीति को आजादी के बाद जिन देसी लोगों ने बड़ी चतुराई के साथ अपना लिया वो आज राज और मौज कर रहे हैं. राज करने वाली ये शक्तियाँ छोटे मोटे मुद्दों को हवा देकर लोगों के बीच की दूरियों को कम नहीं होने देती. धर्म ,जाति, समुदाय ,वर्ग या और किसी बात की आड़ लेकर लोगों के बीच फूट डालने का कोई मौका ये नहीं गंवाती. अंग्रेजो के जमाने के लोगों से पूछोगे तो कहेंगे ज्यादा कुछ नहीं बदला है सिर्फ फर्क इतना है कि राज करने वालों की चमड़ी अब काली है.

आजादी के इतने सालों के बाद भी हमारे यहाँ-

व्यवस्थाए तो हैं पर काम नहीं करती सिर्फ रस्म अदाई भर हो जाती है.

जेब में पैसा हो तो कोई भी झूठ सच साबित हो सकता है और बिना पैसे के सच भी साबित करना दूभर है.

न्याय मिलते मिलते इतनी देर लग जाती है और इतना दर्द मिल जाता है कि आदमी जीत कर भी हारा हुआ महसूस करता है.

सरकार भी एक व्यापार के तरह चलती है.

व्यापार भी एक सरकार सी ताकत रखता है और अपने नियम बनाता है.



यहाँ हर कोई आपको बांटने पर लगा है. चाहे वो राजनीति में हों ,कार्यपालिका में हों ,न्यापालिका में हों मीडिया में हो या व्यापारी हों. जब तक हम बंटे रहेंगे ,कमज़ोर रहेंगे और अपना ही नुक्सान करते रहेंगे. कभी कभी कुछ घटनाएँ जब हम छोटे छोटे मुद्दों से ऊपर उठ कर एक हो जाते हैं ,हमें अपनी ताकत का अहसास करा जाती हैं – चाहे वह वर्ल्ड कप की जीत हो या अन्ना हजारे का अनशन.

क्या इस देश में आम आदमी ताकतवर लोगों के इस दुष्चक्र से कभी उबर पायेगा? या अपनी ही ताकत पहचानने के लिए किसी बहाने का इंतज़ार करता रहेगा?

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