परदे की आड़ में








पिछले दशक में भारत के राजनैतिक और सामाजिक धरातल पर तीन सितारों का उदय हुआ है - सोनिया गांधी ,अन्ना हजारे और बाबा रामदेव .

इन तीनो में एक समानता है . तीनों को महान बनाया है उनके त्याग ने .

सोनिया ने प्रधानमंत्री पद का, रामदेव ने भोतिक सुख और संस्थागत पद का वहीं अन्ना ने धन संम्पति और रिश्ते नातों का त्याग किया.

शायद भावावेश में आकर या फिर परिस्तिथि से समझोता कर के इन लोगों ने कुर्बानी तो डे डाली पर अपना मोह नहीं छोड़ पाए और उन चीजों से अपने आप को बहुत दूर नहीं कर पाए जिनका उन्होंने त्याग किया था.

सोनिया ने प्रधान मंत्री का पद छोडने के बाद इस पद को ही बौना बना दिया. इस पद की शक्तियों और सुविधों का ऊपयोग उन्होंने परोक्ष रूप से बिना पद हासिल करे ही किया.

बाबा जी ने तो किसी व्यावसयिक पद पर ना होते हुए भी ऐसा व्यवसाय चलाया कि अच्छे अच्छों को पीछे छोड़ दिया.

अन्ना ने अपने आंदोलनों के माध्यम से एक लोकप्रिय सितारे का दर्जा पाया और उनकी इस छवि को उनकी टीम और कुछ संस्थओं ने खूब भुनाया पर हठ धर्मिता के चलते और अपनों के हाथो मजबूर होकर वे लोकपाल बनवा ना सके.

परदे के पीछे तो इन तीनो ने अपना कमाल खूब दिखया पर क्या सामने रहते वे ऐसा कर पाते?

अगर सोनिया प्रधान मंत्री होती, बाबा रामदेव अपनी योग पीठ संस्था के अध्यक्ष होते और अन्ना हजारे विपक्ष के नेता तो इनकी स्तिथि क्या होती ??

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