जब
गाड़ी ट्रेफिक लाइट पर रेंग रही थी,आशा ने ताज्जुब से कहा, ‘आज
दोपहर में भी इतना ट्रेफिक है इस रोड पर’. ‘सारा शहर ही जब देखो तब कहीं भागता रहता है’ लता
नें उसकी हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा. सुदीप उन दोनों के बेबजह बोलने पर झल्लाया
हुआ था पर उसने चुप रहना ही उचित समझा और पाना ध्यान कर चलने पर ही रखा. हाँ ये
बात तो उसे भी अटपटी लगी क्योंकि कई सालों से वह उस सड़क का इस्तेमाल कर रहा था और
इतनी भीड़ वहां उसने कभी नहीं देखी थी. तभी उसने देखा की ज्यादातर लोग एक ही तरफ
देख रहे थे. उस तरफ देखने पर उसे एक मोटर साईकिल और एक लड़का गिरा हुआ दिखाई दिया
जो छटपटा रहा था. लगता था उसका पैर फ्रेक्चर हो गया था. पैर के पास काफी खून फैला
हुआ दिखाई दे रहा था. उसके पास पैदल लोगों का एक बड़ा हुजूम जमा हो गया था और बाइक
और कार वाले वहां से गुजरते हुए या तो रुक जाते थे या फिर बहुत धीमे चलने लगते थे.
इसी वजह से वहां भीड़ और ट्रेफिक जाम की स्तिथि बन गयी थी.
सुदीप
ने गाडी किनारे की तरफ करके रुकने का मन बनाया तो उसे भांपते हुए आशा ने हमेशा की
तरह घबरा कर कहा ,’अरे क्यूँ किसी चक्कर में पड़ते हो ,जल्दी से निकल चलो’. लता ने
भी अपनी बहन का साथ देते हुए कहा, ‘हमें क्या लेना देना इस सब बातों से ,मुन्ने के
स्कूल के लिए देर हो रही है,रास्ता देख कर निकल चलिए’.
‘इतने
सारे लोग यहाँ जमा हैं तो कोई ना कोई तो मदद के लिए आगे आ ही जायेगा’,ये सोच कर और
लता और आशा की बातों में आकर उसने गाडी आगे की तरफ बढ़ा ली. जब वह दुर्घटना स्थल के
पास से जा रहा था तो उसने देखा कि वो एक गोल मटोल सा सुन्दर लड़का था जो दर्द से
चीख रहा था और लोगों से उसे अस्पताल ले जाने की गुहार लगा रहा था. पर उसके आस पास
खड़े सब लोग उसकी बात को शायद सुन कर भी अनसुना कर रहे थे. कुछ भले मानस शायद पुलिस
के आने का इंतजार कर रहे थे पर पुलिस को खबर करने की हिम्मत भी अभी तक किसी ने
नहीं जुटाई थी.
गाडी
अभी कुछ दे ही आगे रेंगी थी की मुन्ना ने बड़ी मासूमियत से पूंछा, ‘पापा कोई उन
अंकल को अस्पताल क्यों नहीं ले जा रहा ? क्या अब वो मर जायेंगे ?’
इस
मासूम से सवाल ने उसके अन्दर के इन्सान को झकझोड़ डाला और कुछ करने को मजबूर कर
दिया . अगले ही कट से उसने गाडी को यु टर्न दे दिया. लता और आशा की परवाह न करते
हुए उसने मुन्ना से कहा, ‘बेटा किसी और का तो मुझे मालूम नहीं पर चलो हम उन अंकल
को अस्पताल ले चलते है’.’ मुन्ना ने ताली बजाते हुए खुशी जाहिर की. खुशी तो सुदीप
को भी थी की वो अपराध बोध से मुक्त हो गया था और तमाशबीनो की भीड़ में अब वो
तमाशबीन बन कर नहीं रहेगा.