ज्ञान गंगा या गटर ??

हजारों साल पहले गंगोत्री से जब गंगा की पहली धारा फूटी होगी तो कितनी पवित्र रही होगी!

जब ये बढ़ कर एक विशालकाय नदी बनती गयी तो हम इसका आन्नद उठाते रहे फिर इसके जल प्रवाह को आधार बना कर हमने अपने धंधे खड़े कर लिए और मुनाफे के लिए इसका दोहन शुरू कर दिया.

कहने को तो इसे माँ का दर्जा देते रहे पर साथ में हम अपनी सारी गन्दगी सारा कचरा भी इसी की गोद में खाली करते रहे.

इसकी सफाई के बारे में तो हम भूल ही गए थे
लापरवाही की सारी हदें हमने पार कर डाली और एक पवित्र नदी को गटर बनाने में हमने कोई कसर नहीं छोडी और अब ये नौबत आयी है कि सरकार भी असहाय सी दिख रही है.

ऐसा ही एक और धारा है जो आजकल बड़ी तेजी से हमारी जिन्दगी चला रही है
इस धारा का नाम है इन्टरनेट.

और इस ज्ञान गंगा के साथ भी हम ठीक वैसा ही सलूक कर रहे है जैसा हमने अपनी गंगा माँ के साथ किया .
कहीं इसका भी यही हाल न हो जाये...
कृपया इसे मैला होने से बचाएँ....
इसकी गोद में वही डालें जिससे किसी का भला हो सके न की इसे कचराघर समझ कर हर चीज फेंकते जायें.

कुछ भी डालने से पहले एक बार जरूर सोचें कि क्या ये सही है.

इसकी चमत्कारी शक्तियों को आने वाली नस्लों के लिए भी बचा कर रखें .

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