नकली नोट

‘आखिर उससे इतनी बड़ी गलती हो कैसे गयी ? वो तो अबतक अपने को काफी चालाक समझता था.’
उस हजार रूपये के नकली नोट को देखते हुए झल्लाते हुए उसने सोचा.
उसे तो ठीक से याद नहीं आ पा रहा था के कौन मनहूस उसके गले मैं ये फंदा दाल गया था. ‘कमीना अब मजा ले रहा होगा और किसी और को दूसरा नकली नोट चिपकाने के फ़िराक में होगा.’ उसने फिर सोचा. ‘पर उस दिन कचार या पांच जगह से हजार हजार के नोट आये थे उसके पास और सब के सब अजनबी लोगों के पास से. उस दिन काम को दबाब भी ज्यादा था और उसकी तबियत भी ठीक नहीं थी’ , उसने अपने आप को दिलासा देने की कोशिश की.
‘ चलो जो हुआ सो हुआ , अब आगे कैसे इस मुसीबत से पिंड छुडाएं ‘, उसका दिमाग लगातार सोचता जो रहा था. ‘पिछले  तीन दिनों में की गयी सारी कोशिशें बेकार गयी थी अब तक. पेट्रोल पम्प पर, किराने की दूकान पर, कैंटीन में,टोल बूथ पर हस्र जगह उसने कोशिश कर के देख ली पर हर जगह वो नकली नोट पकड़ में आ जाता था. कम रोशनी वाली जगहों पर भी उसने जाकर देखा पर हजार रुपये लेने से पहले हर कोई परखता जरूर था और उसका नकलीपन पकड़ ही लेता था.
परेशान होकर वो बंच पर अपनी उधेड़बुन में था तभी सामने की दूकान से आती आवाजों ने उसका ध्यान अपनी तरफ खींचा. दुकानदार किसी ग्राहक से झगड़ रहा था की उसने पिछली बार आने पर एक नकली नोट दिया था और ग्राहक यह बात न मान कर मरने मारने पर उतारू था. दोनों तरफ से गाली गलोच हो रहा था.
ये साब देख कर अचानक उसके दिमाग में एक ख्याल कोंधा .जो परेशानी इस नकली नोट की वजह से वो भुगत रहा था वही परेशानी उन सबने भोगी होगी जिनसे होकर यह उसके पास आया. अगर वह ये नोट किसी तरह से चला भी देता है तो और भी न जाने कितने लोग आगे इसी तरह की परेशानी भोगेंगे.
क्यों दे वो इतने लोगों को परेशानी और क्यू ले वो इतनी बददुआ?  

उसने उस नकली नोट को उठाया और फाड़ कर कूड़ेदान में डाल दिया फिर गुनगुनाता हुआ घर चल दिया. लगता था एक भारी बोझ सा उसके दिमाग से उतर गया था. 

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