प्रत्याहार

हमारी पाँच इंद्री (सुनने, देखने, सूंघने, स्पर्श करने, स्वाद लेने की क्षमाताएं) लगातार हमारे दिमाग पर सूचनाओं का बोझ डालती रहती हैं जिससे हमें पता लगता है की हमारे आस पास के वातावरण में क्या हो रहा है. इन सूचनाओं के आधार पर ही हमारा दिमाग हमारे द्वारा  लिए जाने वाले अगले कदम (या हमारा कर्म) निर्धारित करता है.

अक्सर अपनी आदतों से मजबूर , दुनियादारी निभाने और बाजारी ताकतों के जाल में फंस कर एक आम आदमी हमेशा  एक मकडजाल में उलझा सा रहता है और सूचनाओं का तेज प्रवाह लगातार बिना रुके चलता रहता है. इस तरह दिमाग में चल रहे इस प्रवाह से उपजे कर्म  अक्सर हमें थका डालते हैं.

अगर हम इन इन्द्रियों का प्रयोग कुछ देर के लिए बंद कर दें तो एक तो हमारे शरीर के अंगों को आराम मिलेगा और दिमाग में पैदा हुए तरह तरह के भ्रमों से छुटकारा भी मिलेगा. योग में इस साधना को प्रत्याहार कहते है जो पतंजलि द्वारा बताये गए अष्टांग योग का एक अंग है.

प्रत्याहार का एक उन्नत रूप भी है. इसमें न सिर्फ इंदियों का प्रयोग बाहरी दुनियाँ को देखना हम बंद कर देते हैं बल्कि इन इन्द्रियों को बाहर की बजाय अन्दर की तरफ मोड़ देते है. इस तरह से हम अपने से बाहर की दुनियां को जानने की कोशिश नहीं नहीं करते जैसा आम तौर से लोग करते हैं बल्कि उन्हीं इंदियों की सहायता से यह जानने की कोशिश करते हैं कि  हमारे शरीर के भीतर क्या कुछ चल रहा है. इस तरह से हमें जो जानकारी मिलती है वह अपने बारे में अधिक सटीक और वास्तविक होती है बजाय उस जानकारी के जो हम आम तौर पर और लोगों के माध्यम से जुटाते हैं .

प्रत्याहार हमें अष्टांग योग के तीन मुख्य अंग ध्यान, धारणा और समाधि के लिए तैयार भी करता है. इसके द्वारा साधक का दिमाग शांत और निर्मल होता है. प्रत्याहार का अनुभव करने के लिए शव आसन एक सरल विधि है जो किसी भी व्यक्ति के द्वारा आसानी से की जा सकती है.

प्रत्याहार योग साधना का महाद्वार है. इससे शरीर की सहायता से मन को साधना के लिए तैयार किया जाता है.

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