बचपन में एक कहानी
सुनी थी कि एक राजकुमार राक्षस के चंगुल से एक राजकुमारी को बचाने जाता है पर हर
बार मात खा जाता है. अंत में राजकुमारी उसे बताती है कि उस राक्षस की जान एक तोते
में है और अगर उस तोते को मार दिया जाय तो राक्षस अपने आप मर जायेगा और फिर
राजकुमार वैसा ही करके राजकुमारी को आज़ाद करता है.
कल की काल्पनिक
कथा आज के जमाने मे सच होती सी दिखाई देती है, बस अंतर इतना है कि राक्षस और
राजकुमार का रोल अदल बदल हो गया है.
आज हम सब की जान
एक छोटे से स्मार्ट फोन में अटकी रहती है. कलेंडर, केलकुलेटर, रेडियो, डायरी,
फ़ाइल् आदि चीजों को तो ये यंत्र कबका रिटायर कर चुका था और अब तो बैंक , सिनेमा
,टीवी ,आफिस और खरीदारी और मेल-मिलाप के आधे से ज्यादा काम इसके माध्यम से होने
लगे हैं. इसके बिना हम असहाय और अस्तित्वहीन लगाने लगते हैं.
गोया ये गेजेट नए
ज़माने का तोता हो गया हमारे पास. पर हम सब तो हीरो हैं. विलेन या राक्षस तो वो
दुष्ट आत्मा और बाजारी ताकतें हैं जो हमारे इस तोते में छुपी हमारी जान को नुक्सान
पहुचाने की फिराक में रहते हैं. ख़ास कर कुछ सनकी जिन्हें हेकर्स के नाम से जाना
जाता है या फिर किसी बड़ी सी कंपनी के वो चालाक लोग जो हमारी निजी जानकारी को अपनी
कंपनी के फायदे के लिए इस्तेमाल करते है.
क्या हम अपनी जान
इन राक्षसों से बचा पाते है?
या फिर हमारे पास
से राजकुमारी (मतलब ‘पैसा’) आज़ाद होकर राक्षसों के कब्जे में चली जाती है?
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