इन्टरनेट और संयम

फेसबुक की फ्री-बेसिक मुहिम को नकारने का फैसला बड़ा हिम्मत भरा था  जिसके लिए भारतीय जनता और TRAI धन्यवाद के पात्र हैं.

पैसे के दम पर बड़ी ताकतें ग्राहक के अधिकारों का हनन और निजता पर अतिक्रमण अक्सर करती रही हैं.

इन्टरनेट एक सार्वजनिक संस्था है जिसका उपयाग सबके कल्याण के लिए होना चाहिये. इसकी ताकत इसका सार्वजानिक होना और इसका खुलापन इसलिए हर किसी की इस तक पहुँच है.

पर यही खुलापन इसकी कमजोरी भी बन जाता है अत: आये दिन हम साइबर क्राइम और ठगी के किस्से सुनते रहते है.

अब इसमे और जागरूकता की आवशयकता है. समय की मांग है कि नागरिक इसकी क्षमताओं का अधिक से अधिक दोहन करें. पर साथ ही सावधानी भी बरते. हमें अब सूचनाओ के समुद्र से मंथन कर के अपने काम की चीज निकाल लेने की महारथ भी हासिल करनी होगी.

भारत एक बड़ा बहुत बड़ा बाजार है और हर बड़ी वैश्विक ताकत की इस पर नज़र है. जैसे जैसे टेली मार्केटिंग , टीवी और प्रिंट मीडिया की आक्रामक मार्केटिंग के बाबजूद भी हमारे यहाँ के आमजन अपना संयम नहीं खोते ओर उनकी जेब से पैसे निकालने में अच्छे अच्छों को पसीना आ जाता है वैसे ही इन्टरनेट की मार्केटिंग के मकड़ जाल से भी हमें निकलना सीखना होगा.

इन्टरनेट पर खुलेपन का फायदा उठाकर कोई भी बड़ी आसानी से झूठ को बड़ी मासूमियत से ऐसे पेश कर सकता है की वह सच लगे. हम तब इस जाल में फंसते हैं जब भावनाओ और आवेश में आकर हर किसी चीज को आगे बढ़ा देते हैं बस एक बटन ही तो दबाना होता है. हमारे संयम का इम्तहान तब होता है जब हम बताई गयी बात की सच्चाई की पड़ताल करते हैं या इमानदारी से उसका विश्लेषण करते हैं.

अनजाने में अफवाहें फ़ैलाने और लोगों की भावनाओं को आहत करने से बचें. ये इतना मुश्किल भी नहीं है जितना लगता है. बस क्रोध आने पर दस तक की गिनती करने जैसा है.


योग विद्या के सिधान्तों के पालन से ये काम बड़ी आसानी के साथ किया जा सकता है.

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