बारगेन बार बार

मैं अक्सर अपनी पत्नी को बारगेन  करते हुए पाता हूँ. कभी सब्जीवाले से, कभी धोबी से, कभी दूध वाले से और कभी किसी और दुकानदार से.

मुझे लगता था की यह एक उबाऊ , थकाने वाली और गैर जरूरी हरकत है जिसमें मगजमारी से उतना हासिल नहीं होता जितना कि दिमाग खर्च हो जाता है.

पर अपनी पत्नी के नज़रिए से देखने पर इसका एक और ही रूप देखने को मिलता है. यह पूरी प्रक्रिया आपकी वाक्यपटुता और दूसरे व्यक्ति को अपनी बात मनवाने की कला का प्रदर्शन है जिसे आप बार बार रियाज़ करके उन्नत बनाते जाते है और एक कलाकार के रूप में अपना लोहा दूसरों से मनवाते है.
फिर इसमें अपनी गांठ से जाता ही क्या है. बस जरा सी जबान ही तो हिलानी है. हर तरह से फायदे का ही सौदा है. ये कहावत यहाँ बिलकुल ठीक बैठती है- हींग लगे न फिटकरी और रंग भी चोखा आता है .

इस खेल के हर खिलाड़ी के पास एक अजेय शक्ति होती है . उस बिचारे दूकानदार के लिए तो ग्राहक भगवान् है और अपने भगवान् को नाराज़ करने के बारे में तो वह सोच भी नहीं सकता . इसलिए आप जो भी मर्जी कह सकते हैं , मर्यादाओं को तोड़ भी डालें तो कोई बात नहीं , इस ज़ुबानी जंग में आपके लिए सब जायज़ है पर दुश्मन  के हाथ बंधे है

इस कलात्मक  व्यापार में आपको एक मोटी बचत की रकम हासिल होती है. और फिर बचत तो एक तरह की कमाई ही है.


इस कला में आपकी सफलता आपकी दूसरों को झांसा देने की क्षमता पर आधारित है. आप सामने वाले को यह विश्वास दिलाने में सफल होने चाहिए कि आपसे किया गया सौदा उसके लिए किसी न किसी तरह से फायदे का सौदा है चाहे इस बार वह आपको लागत से भी कम दाम में सामान दे रहा/रही है .

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