आम आदमी इस सब में
पीड़ित और ठगे हुए व्यक्ति की भूमिका में पाकर राहत महसूस करता है. सारे के सारे
पाप का ठीकरा फोड़ने के लिए एक खलनायक का चेहरा तो मिल ही चुका है.
पर ये ताली क्या एक हाथ
से ही बजी होगी . क्या बेईमानी की इन घटनाओं के श्रंखला में सिर्फ एक तरफी
कार्यवाही ही हुयी होगी. क्या इसमें उन लोगों के लालच का कोई योगदान नहीं है
जिन्होनें सारी मर्यादाएं, कायदा कानून और इंसानियत को एक तरफ रख कर फर्जी लोन दिए
होंगे (जिससे कारण उस रकम के कई वास्तविक हकदार महरूम भी हो गए होंगे).
इस तरह के सभी पापी
जनता की भीड़ में मिल कर किसी एक नीरव मोदी या ललित मोदी को पत्थर मार मार कर बेहद
बड़ा बना देते हैं. समाज में दोगलेपन का यह खेल सदियों से मिल जुल कर खेला जाता रहा
है. बस खिलाड़ी बदल जाए है.
राम रहीम और आसाराम के अपराधों के समय भी यही
खेल उन लोगों द्वारा खेला गया जिनकी अंध भक्ति ने इस लोगों को भगवान बना रखा था.
जमाना कितना भी नया
क्यों न हो जाय पर गलतियाँ हम वही पुरानी दोहराते हैं.
क्या इससे निजात संभव
है?
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