घड़ी


घड़ी तू क्यों इतना नाप तोल कर चलती है,
क्यों नहीं मेरी ज़िंदगी की तरह कभी रुकती
और कभी मचलती है

छोटे कदमों से लम्बा सफ़र तय करती है
दो पल का भी आराम नहीं करती
तेरे काम की तुझे तनख्वाह भी तुझे
कहाँ मिलती है

ये सही है कि वक्त की धारा
थम नहीं सकती
पर तुझे किस बात की जल्दी है?

बोर होने से अगर बचाना है तो
ज़िंदगी से कुछ सीख ही ले ले
जो हर कदम पर अपना मिजाज़ बदलती है

बहुत आये होंगे तेरे टिक टिक के छलावे में मगर
बात को मेरी गांठ बाँध
ऐसी नसीहत बड़ी मुश्किल से मिलती है

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