योग


योग शब्द का अर्थ है मिलन.
आखिर यह मिलन किसका किससे है?
हमारे शरीर और जीवन में हमेशा उपस्तिथ दो द्वन्द्कारी शक्तियां (जिन्हें अनेको नाम से पुकारा जाता है) के स्वाभाविक और सुन्दर मिलन ही योग है.
ये शक्तियां हमारे व्यक्तित्व को बांटने की फिराक में रहती है. इन्हें कुछ लोग भौतिक-आत्मिक या सूक्ष्म-स्थूल शक्तियों के नाम से जानते हैं तो कुछ सैधान्तिक-व्यवहारिक द्रष्टिकोण या तार्किक-भाव पक्ष की मन:स्तिथि कह कर बुलाते है. अनेको सन्दर्भों में  इस विभाजनकारी शक्तियों को शिव-पार्वती, नर-मादा, नया-पुराना, आक्रामक-सुरक्षात्मक, हठी-लचीला, अँधेरा-उजाला, ठंडा गर्म आदि विशेषण देकर पुकारा जाता है.
जैसे परिवार में समझदार मुखिया के प्रभाव से पति-पत्नी, भाई बहन, सास-बहु, बाप-बेटा आदि अलग अलग द्रष्टिकोण रखने के बाबजूद कलह की बजाय आनंदपूर्वक रहते है
जिस प्रकार एक कुशल राष्ट्राध्क्ष के प्रभाव से अनेक प्रान्तपाल भिन्न भिन्न मत और रूचि के होते हुए भी मतभेद से ऊपर उठकर एक शक्तिशाली राष्ट्र का निर्माण कर डालते है
जिस प्रकार एक कुशल अधिकारी के प्रभाव से कोई संस्था अपने पदाधिकारियों के काम करने के ढंग और योग्यता में बड़ा अंतर होने के बाबजूद सबके भले के लिए अपना अस्तित्व बनाये रहती है
ठीक इसी तरह से योग विद्या के प्रभाव से कोई भी व्यक्ति अपने तन-मन और जीवन में विद्यमान द्वन्द्कारी शक्तियों की उपस्तिथि के बाबजूद उन शक्तियों के माध्यम से ही अपने जीवन में हर परिस्तिथि में आनंद और उत्सव की सी स्तिथि का निर्माण कर डालता है .

तुगलकी फरमान


रक्षा मंत्री के एक फैसले ने कि ‘देशभर की सैनिक छावनियों के सभी मार्ग गैर सैनिक (सिविलियन) के लिए खोल दिए जायें’ एक तूफ़ान सा ला दिया है | एक तरफ प्रभावशाली व्यक्ति और संस्थाएं इस फैसले के लिए श्रेय लेने की होड़ में हैं और बहुत से सिविलियन इस बात को लेकर उत्साहित हैं कि उन्हें सैनिकों के गुप्त और अनोखी दुनिया के दर्शन करने को मिलेगा, वहीं दूसरी ओर सैनिक बिरादरी और एक बुद्धिजीवी वर्ग सैनिक ठिकानों की सुरक्षा को लेकर चिंतित है|
सैनिक छावनियों के अन्दर से जाकर समय और धन की बचत की सुविधा के चलते अनेकों संस्थाएं इस लक्ष्य की और वर्षों से संघर्ष कर रही थीं , पर जिस अप्रत्याशिक ढंग से यह फैसला लिया गया , अनायास ही दिल्ली के एक सनकी सुलतान मुहम्मद बिन तुगलक की यादें तजा हो जाती हैं| तुगलक ने अचानक अपनी राजधानी दिल्ली से दौलताबाद ले जाने और सोने/चांदी की जगह पीतल/तांबे के सिक्के जारी करने का फरमान जारी किया था| हालाँकि ये फैसले सिद्धांततह: गलत नहीं थे पर जिस हड़बड़ी और बिना पूरी तयारी के इन्हें लागू किया गया उससे इसका मजाक बन कर रह गया|
इसी तरह का नज़ारा हमें नोटबंदी  और GST को लागू करते वक्त देखने को मिला था|
लगता है 800 साल बाद भी  दिल्ली के सुल्तानों का रवेय्या नहीं बदला|

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