सुख में सुमिरन


संत कबीर का एक दोहा है- दुःख में सुमिरन सब करें, सुख में करे न कोय, जो सुख में सुमिरन करें तो दुःख कहे को होय.
इसमें बताया है कि लोग दुःख या कष्ट आने पर ही भगवान को याद करते हैं या उनका का स्मरण (सुमिरन) करते है और कष्ट की अवस्था जाते ही फिर भूल जाते है. पर अगर यही काम (प्रभु-स्मरण) सुख की अवस्था में किया जाय तो कष्ट की स्थिती ही नहीं आयेगी. 
यही बात योग के बारे में भी सही उतरती है. लोग अक्सर अपनी किसी कष्टप्रद समस्या जैसे मोटापा, तनाव या निराशा आदि को दूर करने के लिए योग करना चाहते हैं जैसे योग कोई दवाई हो. पर कितना अच्छा हो अगर यही लोग योग को अपनाने के लिए किसी कष्टपूर्ण स्तिथि के आने की प्रतीक्षा न करें बल्कि स्वेच्छा से इसमें उतारकर अपने स्वास्थ्य को बनाये रख सकें.

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