हिंदी साहित्य और भारतीय संस्कृति : वैश्विक परिदृश्य

बद्रुका कालेज ,हैदराबाद में १४/१५ दिसम्बर को एक दो दिन का अंतर्राष्टीय सम्मलेन हुआ जिसमें मुझे भी अपना शोधपत्र प्रस्तुत करने का अवसर मिला। इन शोधपत्रों को मिलिंद प्रकाशन ने एक पुस्तक के रूप में भी प्रकाशित किया है. शोधपत्रों केसार  को भी स्मारिका में प्रकाशित किया गया।






घड़ी

 नये क्षितिज पत्रिका में मेरी एक रचना 'घड़ी' प्रकाशित हुयी


हिंदी भूषण श्री सम्मान

के बी साहित्य समिति , बदायूं (उ. प्र.) द्वारा  १८ दिसम्बर को मुझे यह सम्मान प्राप्त हुआ





आज में सठियाने लगा हूँ

(अपने साठवें जन्मदिन पर)


इस बार के जन्म दिन पर
और दिलकश मैं नजर आने लगा हूँ
सीनियर सिटीजन क्लब में एंट्री पाने चला हूँ      
आज में सठियाने लगा हूँ

साठ बसंत देख लिए
साथ में और कितने ही मौसम भी रंग भी
मौत के नजदीक अब और मैं आने लगा हूँ
आज में सठियाने लगा हूँ

घड़ी कलेण्डर के बंधनों से आज़ाद होकर
मस्त होकर जीना सीख लिया है
वक्त  से ऊपर कही जाने लगा हूँ
आज में सठियाने लगा हूँ

शायरी का शौक पाल लिया हमने अब
सब समझते हैं कि मैं बडबडाने लगा हूँ
रात दिन कविता ग़ज़ल गाने लगा हूँ
आज में सठियाने लगा हूँ

खुद को नहीं है होश
क्या कहे जा रहा हूँ में बेखबर
बिन पिये ही आज लड़खड़ाने लगा हूँ
ये किधर मैं अब जाने लगा हूँ
आज में सठियाने लगा हूँ

बहरा है क्या?

आदत से मज़बूर

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