मसल मेमोरी


मसल मेमोरी (मांसपेशी की स्मृति) - मैंने जब पहली बार इस शब्द को सुना तो बड़ा अजीब सा लगा. अब तक तो मैं समझता था कि मेमोरी या स्मृति तो दिमाग़ में ही रह सकती है   
पर एक सेमिनार में जब बार बार इस शब्द को सुना तो इसने मेरा ध्यान आकर्षित किया. इंटरनेट को खंगाला तो पता लगा कि वास्तव में ये एक जादुई शब्द है जिसके समानार्थी रूप में एक और शब्द मोटर लर्निंग को भी अक्सर प्रयोग में लाया जाता है.

इसका अर्थ है कि किसी भी काम की पुनराबृत्ति इतनी बार की जाय कि वह काम हम अपने अचेतन मन/मस्तिष्क से करने लगते हैं ,अर्थात उसे करने में हमारे चेतन मस्तिष्क की भूमिका नहीं होती है. यह हमारी आदत के स्वरुप में शामिल हो जाता है.

किसी काम कि एक विशेष संख्या से अधिक पुनरावृत्ति के बाद हम मसल मेमोरी स्थापित करने में कामयाब हो जाते है. इस बात का उपयोग  अक्सर प्रशिक्षण कार्यक्रमों में किया जाता है.

पर जब हम मसल मेमोरी से काम कर रहे होते हैं तो हमारा रवैया स्वाभाविक प्रतिक्रिया न होकर एक पक्षपातपूर्ण ,मशीनी और पूर्व निर्धारित होता है. योग में इसे ही(चित्त या मन की) बृत्ति कहा है, जिसका हमें निरोध अथवा नियंत्रण या निवारण करना चाहिए. तभी तो हम अपने चेतन मन से अपने सामने आने वाली घटनाओं में भाग ले सकेंगे. एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए यह उचित है ,वेदों में भी लिखा है तमसो मां ज्योतिर्गमय (हे ईश्वर , मुझे अंधकार से प्रकाश की और ले चलो अर्थात मुझे अवचेतन मस्तिष्क से चेतन मस्तिष्क की और ले चलो).

पर व्यवस्था और बाजार या समाज के  की दृषिकोण से यह अधिक सुविधाजनक है की हम मसल मेमोरी स्थापित करें और अवचेतन मन से काम करें ताकि व्यवस्था में बाधा  न खड़ी हो और उसका काम सुचार रूप से चलता रहे.

अगर हमें दुनियारी से दूर कहीं एकांत में जाकर तपस्या करनी है तो तो हमें अपनी सभी मसल मेमोरी को एक एक करके मिटाना होगा तभी हम निर्वाण की और बढ़ सकेंगे . पर हम में से अधिकांश लोगों को समाज में रहना भी तो है उससे भागना नहीं है. समाज में रहते हुए भी अगर हमें योग साधना करनी है तो 'दाल में नमक के बराबर' मसल मेमोरी तो रखना ही होगा अर्थात अचेता और चेतन मन की मात्रा का अनुपात (स्वादानुसार) एक छोटी सी संख्या हो. पर कुछ लोग इतनी मसल मेमोरी धारण कर लेते हैं की पूरी दाल ही काली हो जाती है.
आपकी मसल मेमोरी की मात्रा कितनी है?


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