आप स्वस्थ हैं या healthy ?


स्वस्थ शब्द का अर्थ है -'जो स्वयं में स्थित है'.
सुनने में ये बड़ा अजीब सा लगता है ! आखिर हर कोई अपने आप में ही तो स्थित होगा, और कहीं कैसे हो सकता है !
पर इसमें एक गूढ़ रहस्य छिपा है. यहाँ शरीर की नहीं मन की बात हो रही है. यह तो सर्वविदित सत्य है की मन चंचल है. कहीं एक जगह नहीं ठहरता.
यह इसलिए होता है कि हम समझते हैं कि जहाँ हम अभी हैं वहीं से अच्छी कोई और स्थिति कहीं न कही है ,इसी कि खोज में हमारा मन एक से दूसरी जगह भटकता है और इस प्रक्रिया में नए नए अविष्कार भी होते रहते हैं.
हिरन के अन्दर कस्तूरी नाम की चीज होती है जिसकी खुशबू (जो उसे बेहद अच्छी लगती है) जब उसके नथुनों में जाती है तो वह उस खुशबू के श्रोत को पाने के लिए इधर उधर भटकता रहता है. कहते हैं कस्तूरी की खोज में ही हिरन जंगल जंगल भटकता रहता है और उछल कूद करता रहता है. शायद हमारी व्यथा की भी यही कहानी है. हमारी सब समस्याओ (जिन्हें हमने ही पैदा किया है ) का उत्तर भी हमारे भीतर ही छुपा होता है पर हम इसी खोज में रहते है कि और से आकर कोई दूसरा हमें बता जाय.
पर हमारी असली ख़ुशी किसी बाहरी चीज पर निर्भर नहीं करती . वह तो हमारे ही भीतर छुपी होती है. जो भी जैसे भी हैं, वही हमारी वास्तविक स्तिथि है ,अन्य सभी स्तिथियाँ तो काल्पनिक होंगी. योगी और सिद्धः व्यक्ति इस  परम सत्य को आत्मसात कर लेते हैं और अपने मन को स्वयं में अर्थात वर्तमान में स्थित कर लेते हैं,वे भविष्य की काल्पनिक स्थितियों के पीछे व्यर्थ की दौड़ भाग नहीं करते और न ही इस प्रक्रिया में अपने शरीर को कष्ट देते हैं . वे वर्तमान में मौज में रहते हैं अत: हर स्तिथि में मौज में रहते हैं.
तो क्या इसका अर्थ हुआ हम जीवन में कोई प्रयत्न ही न करें ?
बिलकुल नहीं. संघर्ष तो हमारी नियति है. हम इससे बच नहीं सकते.
कहीं पहुंचने के लिए अपने आप को कष्ट न दें बल्कि आनंद पूर्वक जीवन जीने के लिए ही प्राण-प्रण से और उत्साह से भर कर कर्म करें. जिंदगी का अपने आप कोई उद्देश्य नहीं है पर उद्देश्य से अपने को बाँध लेने से हमें एक रक्षा कवच मिल जाता है.पर वह उद्देश्य हमारी जिंदगी नहीं है और उसे प्राप्त करने के बाद हमें कोई और उद्देश्य को ढूंढना  होगा. यह बिलकुल ऐसे ही है अपनी पसंद के जैसे कपडे पहन कर हम समाज में बहुत सी समस्याओं से बचे रहते हैं पर हमारे कपड़े हमसे अलग हैं , वे हम नहीं हो सकते.

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