दर्जी


बाज़ारीकरण के इस दौर  में बेचारे
दर्जी कहीं खोते जा रहे हैं
और हम सिले हुए कपड़ों की जगह रेडीमेड कपड़ों के 
आदी होते जा रहे हैं

और फिर  हमारे रिश्ते भी तो
आजकल रेडीमेड कपड़ो कि तरह हो गए है
इसकी भीनी भीनी सी खुशबू कहीं उड़ चुकी है
इनमें गुंथे हुए अरमान कहीं खो गए है

जो पसंद आ गया तो खरीद डाला
जब तक मन भाया रगड़ डाला
लो हो गयी लाइफ झिंगालाला

इस्तेमाल के बाद बासी खबर की तरह किसी कोने में गुम हो जाते हैं
मर मर के जिन्दा तो रहते हैं पर नज़र कहीं नहीं आते हैं
इस तरह नए आने वाले रिश्तों के लिए जगह बनाते हैं
और ज़िन्दगी की गाड़ी को आगे बढ़ाते हैं

अगर आपकी जेब में पैसा है
तो आप इस लुप्त होती प्रजाति को भी पाल सकते हैं
जो आपकी पर्सनाल्टी में जान डाल सकते हैं
इनके दम पर आप बड़े ठाठ से रहते हैं
पर अमीरों की दुनियां में
इन्हें दर्जी नहीं डिज़ाइनर कहते हैं


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