5 साल की तैयारी



धारा 370 हटाने का मुहिम तो डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1951 में ही छेड़ दिया था और इसी बात पर जनसंघ पार्टी की स्थापना भी की थी, पर इसकी असली पटकथा तीन पीढ़ियों बाद 2014 में मोदी और अमित शाह ने बीजेपी की सत्ता संभालने के बाद लिखी। यूं तो पहले भी बीजेपी की 13 दिन और 13 महीने की सरकारें बनी पर उनके पास स्पष्ट बहुमत नहीं था। नरेंद्र मोदी को जनता ने लोकसभा में स्पष्ट बहुमत देकर भेजा। मेरा मानना है कि 2014 में सत्ता संभालते ही इन दोनों रणनीतिकारों ने इस पटकथा का आरंभ किया। असंभव से लगने वाले कार्य में अनेकों चुनौतियां थी जिनका एक-एक करके क्रमबद्ध तरीके से इन्होंने निदान किया। आइए इन्हें समझते हैं।
पहली चुनौती थी अलगाववादियों और पाकिस्तान के पिट्ठुओं की कार्यशैली की गुप्त और आंतरिक जानकारी हासिल करना और साथ ही परदे के पीछे काम करते उनके मुख्य व्यक्तियों की पहचान करना। कट्टरवादी लोगों की सीमा रेखा लांघ कर यह कार्य करना बड़ा ही दुरूह और जोखिम पूर्ण था। इसको करने के लिए उन्होंने एक बेहद जोखिम पूर्ण मार्ग चुना जहां पार्टी के भीतर और देश भर में घोर विरोध के बावजूद उन लोगों के साथ सत्ता की भागीदारी की जो कश्मीर में अलगाववादी भावनाओं को हवा देकर अपना उल्लू सीधा कर रहे थे। शायद उस समय अधिकतर लोग बीजेपी के मंतव्य को भांप नहीं पाए और पार्टी को कड़ा विरोध सहना पड़ा। पर कश्मीर विधानसभा में बीजेपी का मकसद महज सत्ता न होकर उससे भी कहीं आगे था। मोदी-शाह की इस जोड़ी ने जम्मू क्षेत्र में अपने पहले से उपलब्ध प्रभाव को जी जान से बढ़ाने के लिए उसमें  पूरी ताकत झोंक दी और यह सुनिश्चित किया कि सत्ता में उनकी भी भागीदारी हो। मुख्यमंत्री का पद अपनी सहयोगी पार्टी को दे कर उन्होंने उनका विश्वास जीत लिया और कश्मीर के अलगाववादियों लोग कुछ आश्वस्त और गाफिल हो गए । इस पर जांच एजेंसियों का इस्तेमाल करते हुए सभी वह जानकारी जुटाई गई होगी जिससे कि आगे का मार्ग प्रशस्त हो सके।
जब यह सब जानकारी हासिल हो गई होगी तब बीजेपी ने कश्मीर विधानसभा की सरकार गिरा दी । और वहां राष्ट्रपति शासन लगा कर अलगाववादियों और आतंकवादियों के समर्थन देने वाले मुख्य व्यक्तियों को जांच संस्थाओं के माध्यम से कमजोर करना शुरू कर दिया ।
अगली समस्या थी संसद से संविधान संशोधन को पास कराने के लिए दो तिहाई बहुमत की । इसके लिए धारा 370 में ही निहित उपखंड का उपयोग करके उसे खोखला करने की योजना बनाई जो राष्ट्रपति के अधिकार में आती थी पर उसे तब ही किया जा सकता था जबकि जम्मू और कश्मीर की संसद ऐसा करने की अनुशंसा करें । इसके लिए जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन की अवधि बढ़ाई गई । अब क्यांकि किसी प्रदेश की विधानसभा अगर अस्तित्व में ना हो तो वहां के सब अधिकार संसद में स्वत: ही आ जाते हैं अत: जम्मू कश्मीर की सरकार ना होने की स्थिति में यह प्रस्ताव संसद में लाया गया ।
लेकिन क्योंकि प्रस्ताव दोनों सदनों से पारित होना था और बीजेपी की संख्या लोकसभा में तो बहुमत की थी और राज्यसभा में यह बहुमत का आंकड़ा अभी दूर था जिसके पहुंचने में काफी समय लगता । पर इतना इंतजार न करते हुए यहां पर एक और युक्ति अपनाई गई । वह यह थी कि अध्यक्ष के विशेषाधिकार का उपयोग करते हुए बिल को सदन में प्रस्तुत करने की सूचना सदस्यों को बिल्कुल अंतिम समय (उसी दिन) में देने की । सदन आमतौर पर जब कोई महत्वपूर्ण बिल संसद के पटल पर रखा जाता है तब अधिकार संसद सदस्य अपनी उपस्थिति सदन में सुनिश्चित करते हैं जिससे वह मतदान वह चर्चा में भाग ले सकें कई बार पार्टियां व्हिप भी जारी करती हैं। अन्य दिन बहुत से सदस्य विभिन्न कारणों से अनुपस्थित रहते हैं। इस  युक्ति का का सफल प्रयोग तीन तलाक के बिल को पारित करते समय किया गया ।
अब जब धारा 370 का बिल प्रस्तुत किया गया तो यह राज्यसभा में पहले किया गया क्योंकि अगर लोकसभा में (जैसा कि अक्सर होता है) यह पहले प्रस्तुत होता तो राज्यसभा के सांसद सचेत हो जाते और उनकी उपस्थिति भी अधिक हो जाती ।
विधेयक में धारा को पूरी तरह से हटाने की मांग नहीं की गई क्योंकि तब यह संविधान में संशोधन माना जाता । अतः इसके सारे उपखंड निष्प्रभावी कर दिए गए सिर्फ पहले खंड को छोड़कर जिसमें लिखा था कि जम्मू और कश्मीर भारत का अभिन्न भाग है । इस तरह धारा 370 को एक आवरण बना कर रहने दिया गया
अब एक और चुनौती थी बिल पास हो जाने पर वहां के लोगों को सड़क पर उतरकर उपद्रव करने से रोकने की। इसका उपाय बिल प्रस्तुत करने से पहले ही किया गया जहां सैनिकों की भारी मात्रा में तैनाती करके संवेदनशील क्षेत्रों को छावनी में तैनात कर दिया गया। फोन और इंटरनेट  की सुविधाएं हटा ली गई ।इसका फायदा यह हुआ कि लोग अपने घर में बंद होकर रह गए। अब उपद्रव करने वाले चाह  कर भी कुछ नहीं कर सकते थे क्योंकि यह लोग भीड़  का सहारा लेते हैं और यह उन्हें मिलेगी नहीं क्योंकि लोग तो अपने घरों में कैद है और बाहर नहीं निकलेंगे। उपद्रव फैलाने वाले मुख्य लोगों को तो पहले ही चिन्हित किया जा चुका था जिनको या तो गिरफ्तार कर लिया गया या निष्प्रभावी कर लिया गया। इस तरह कोई बड़ी दुर्घटना या हिंसा की घटना की संभावनाओं को होने से पहले ही टाल दिया गया ।
एक और बड़ी चुनौती थी इस पूरी योजना के की भनक मीडिया या विरोधियों को न लगने देने  की इसके लिए बड़े ऊंचे दर्जे की गोपनीयता बरती गई। सरकार के कैबिनेट स्तर के मंत्री तक को योजना की जानकारी नहीं थी। यह सब इतना अचानक हुआ विरोधियों को कुछ भी करने की बात तो दूर, सोचने-समझने तक का समय ही नहीं मिला ।
धारा 370 को प्रभावहीन करना तो पहला कदम था। सरकार के पास अभी चुनौतियों की लंबी फेहरिस्त है। जम्मू और कश्मीर का विकास करना है और वहां के लोगों को मुख्यधारा से जोड़ना है। देखें उसमें कहाँ तक सफलता मिलती है?

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