एक बार मुझे अपने एक मित्र के साथ रेल से कहीं जाना जाना था. हमेशा की तरह मैं रेल छूटने के समय से करीब आधा घंटा पहले स्टेशन पहुँच गया. इस बार इस कार्यवाही को अंजाम देने में मुझे काफी मशक्कत करनी पडी क्योंकि मित्र महाशय बड़े आरामखोर थे . मुझे उन्हें झिझोडकर जगाना पड़ा, नाश्ता उनके मुंह में ठूसना पड़ा और लगभग खींच कर उन्हें घर से बाहर तक लाना पड़ा.
स्टेशन पहुँच कर मित्र महोदय बोले,' यार, क्यों इतनी जल्दी मचा रखी थी? अभी आधा घंटा बचा है.में तो हर बार ठीक समय पर ही स्टेशन पहुंचता हूँ. इतना समय स्टेशन पर क्यूँ बर्बाद करना.'
मैंने जबाब दिया, 'भाई ,अगर रास्ते मै कुछ परेशानी आ जाती तो? कुछ तो गुंजाइश रखनी थी.'
मित्र ने मुस्कुराते हुए सवाल किया, आज तक जिन्दगी में रेल पकड़ते वक्त कितनी बार तुम्हारे रास्ते में कोई परेशानी आई ?
मैंने सोच कर जबाब दिया, ४ या ५ बार.'
उसने फिर पूंछा ,आज तक कुल कितनी बार रेल में यात्रा की होगी तुमने?'
मैंने मन ही मन हिसाब लगाया - पिछले ३० सालों से हर साल ५० बार तो यात्रा हो ही जाती होगी .
'१५०० बार', मैंने कहा.
इस पर मित्र महाशय बोले,' तुमने ७५० घंटे (१५०० बार के लिए हर बार आधा घंटे के सिसाब से) का समय जो करीब एक महीने से भी ज्यादा होता है उसे बर्बाद कर डाला महज ४/५ बार की परेशानी से बचने के लिए. ये बेबकूफी नहीं है क्या?
उस वक्त तो में उन्हें कोई उत्तर न दे सका पर बाद में मैंने इस गणित पर विचार किया.
किसी भी प्रोजक्ट की योजना बनाते समय और उसे अंजाम देते समय भी इंजीनियरिंग की गणनओं के बाद भी कुछ तो गुंजाइश रखी ही जाती है.
पर सवाल यह है कि ये गुंजाइश कितनी हो?
मेरा अपना मानना है कि यह इस बात पर निर्भर करता है कि उस घटना के न होने की दशा में नुकसान कितना है.
अगर इससे होने वाला नुकसान मेरे लिए मायने रखता है तो निश्चित ही मैं गुंजाइश की मात्रा अधिक रखूँगा चाहे इसके लिए मुझे किसी परेशानी का सामना क्यों न करना पड़े.
गणित जरूरी है पर जीवन को गणित मै बंधा नहीं जा सकता.
मेरे कहने का यह मतलब हरगिज यह नहीं है कि मेरा मित्र गलत था. बस उसके गुंजायश रखने की मात्रा मेरे से बहुत कम थी.जहाँ में ३० मिनट का गुंजायश रखने का आदी हूँ वहां उसके लिए एक या दो मिनट बहुत थे. इसका कारण था उसका मुझसे कहीं अमीर होना. मैं जानता था कि अगर उसकी रेल छुट भी गयी तो उसे बहुत कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला. वो टेक्सी या हवाई जहाज में बैठ कर समय से पहुँच ही जायेगा.
पर मैं गरीब इतना खर्चा नहीं उठा सकता.
इसी लिए तो इतनी गुंजायश रखता हूँ.
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