मटकाना न आया

 


पिए जाम कितने ठिकानो पे हमने 

शराबी के माफिक मगर पीना न आया

ज़िन्दगी बीत गयी मरते-मरते       

कभी ढंग से हमको जीना न आया

 

हसरतों के खेल में उलझे हैं ऐसे

दिल को ठीक से धड़कना न आया

डॉक्टरों के लगा रहे  हैं अब चक्कर

ब्लड प्रेशर ने जो दिल पे कब्ज़ा जमाया

 

खुशबुओं को चुन चुन कर भर तो लिया अंदर

पर सारा जहर भी अपने अंदर ही छुपाया

ये सच है कि इस मस्तकलन्दर को

कभी ढंग से साँस लेना न आया

 

उछल कूद कर ली कसम से बहुत

कभी ठीक से डांस करना न आया

घिसटते रहे हर कदम ज़िन्दगी के साथ

खुदा की कसम, पर  मटकाना न आया

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