सांस तू बोर नहीं होती
आती है जाती है
रुकने का नाम नहीं लेती
इस बोझिल कवायत से
सांस तू बोर नहीं होती
आने जाने के सिवाय
कुछ नया काम तुझे मिलता है या नहीं
एक सा काम किये जाती है
सांस तू बोर नहीं होती
एक सा काम किये जाने पर
में तो बड़ी जल्दी बोर हो जाता हूँ
तेरा मिजाज़ कुछ अलग है तभी तो
सांस तू बोर नहीं होती
तेरे ठहर जाने के बारे में
तू तो नहीं सोचती पर मैं
सोच सोच कर अक्सर डरता हूँ
क्या मेरे डरने के डर से
सांस तू बोर नहीं होती
इस मतलबी दुनिया में
दिल की धड़कन की तरह
तू मेरी सच्ची मददगार है
वर्ना क्यों ऐसा होता है कि
सांस तू बोर नहीं होती
मोह
मोह न होता इस काया से तो मैं क्यों
इस बीमारियों की गठरी को उठाता ?
मोह न होता अगर इस घर से तो मैं क्यों
इस चार दीवारों और एक छत के नीचे इतराता
?
मोह न होता इस कुनबे से तो क्यों मैं क्यों
इतना झगड़ा करने के बाद भी अपना कहलाता
?
मोह न होता इस देश तो क्यों मैं क्यों
इस आपाधापी में भी सुकून पाकर इतराता ?
मोह न होता इस दुनिया से तो मैं तो स्वर्ग
सिधार जाता
और लोग मजा लेते , किसी के बाप का क्या जाता ?
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