अपनी इकसठवीं सालगिरह पर

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कमी का अहसास

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गौरय्या की सीख


गंगा नदी के किनारे एक सुन्दर गॉंव था। उस गॉंव के बीच में एक बड़ा सा पेड़ था। अक्सर धूप में लोग उसकी छाँव में आराम करने बैठ जाते और दुनिया-जहान की बातें करते। कोई उसके तने पर अपनी साइकिल टिका देता तो कोई अपना अंगोछा उसकी डाली पर सुखा देता। उसके फूल जब खिलते तो लोग उन्हें तोड़ कर ले जाते और तरह-तरह से इस्तेमाल करते। कोई उन्हें भगवान पर चढ़ाता तो कोई माला बनाता। कोई गुलदस्ता बनाता तो कोई गजरा बनाती। सभी को उनकी खुशबू बड़ी पसंद थी। जब उसके फल  लग  जाते तो भी लोग उन्हें तोड़ते सबका जीवन हंसी-खुशी चल रहा था बस कुछ शरारती बच्चे पेड़ पर लगे फलों को तोड़ने के लिए पत्थर मार-कर पेड़ को चोट पहुंचाते थे
 एक दिन छोटी सी किसी बात पर पेड़ के हिस्सों ने झगड़ा शुरू कर दिया। पेड़ का तना कहने लगा ,"तुम सब मेरे सहारे ही टिके हो ,वर्ना कभी के धरती पर गिर गए होते '।इस पर डालियों ने कहा ," अरे तने, तुम तो ठूँढ से खड़े रहते हो, ये तो हम हैं जो फल, फूल और पत्तियों को साधे रहते है। तब पत्तियां कहने लगी , “दिन-रात धूप सहकर फल और फूलों को बनाने का रास्ता हम तैयार करती हैं, हमारे बिना कुछ भी नहीं हो सकता। फूलों  ने तब कहा," हमारी खुशबू से पूरा गॉंव महकता है और हम सबके काम आते हैं"। फल भी कहाँ पीछे रहने वाले थे , इसलिए बोले ,"हम सबका पेट भरते हैं। हमारे लिए ही पूरा गॉंव इस पेड़ के आस पास चक्कर काटता रहता है।"
 सब कोई अपने आप को दूसरों से अच्छा बता रहा था और कोई किसी की बात सुनाने को तैयार नहीं था। इस तरह झगड़ा बढ़ता गया और हर कोई अपना काम करने के बजाय दूसरों के दोष ढूंढने लगा ताकि उन्हें नीचे दिखा सके। अब वे सब एक दूसरे से हंसी-खुशी बातें नहीं करते थे और न ही आपस में मज़ाक करते थे। सब अपना-अपना काम तो करते थे पर किसी का भी उसमें मन नहीं लगता था। इन सब बातों का असर पेड़ पर पड़ने लगा और उसका तना और डालियाँ पत्ते सूखने लगी । फूलों में भी पहले जैसे खुशबू नहीं रही और न ही फलों में पहले जैसा स्वाद। गांववालों ने भी धीरे-धीरे वहाँ आना कम कर दिया।
 उस पेड़ पर बहुत से पक्षी भी अपना घोंसला बना कर रहते थे। धीरे-धीरे वे सब भी पेड़ को छोड़ कर जाने लगे। अंत में बस एक गौरय्या और उसका बच्चा ही वहां बचा। बच्चा बहुत छोटा था और अभी उड़ नहीं सकता था इसलिए गौरय्या इंतज़ार कर रही थी कि कब वह उड़ना सीखे।
एक  दिन गौरय्या के बच्चे ने अपनी मां  से पूंछा ,"माँ ,सब पक्षी इस पेड़ को छोड़ कर क्यों चले गए और हम कब यहाँ से जाएंगे?"
इस पर गौरय्या बोली, “बेटा ,इस पेड़ के सब अंग आपस में एक दूसरे से लड़ते-झगड़ते हैं और मिल कर नहीं रहते। यह अच्छी बात नहीं और ऐसी जगह रहना ठीक नहीं। ऐसे पेड़ को न तो कोई पक्षी या पशु पसंद करता कई और न ही कोई इंसान। इंसान को ही देख लो कैसे वे लोग अपने घर हो या कक्षा, शहर हो या देश ,आपस में मिल-ज़ुल कर रहते है। जहाँ वे लोग झगड़ा करते हैं वहां ज्यादा समय तक खुश नहीं रह पाते और न ही पसंद किये जाते हैं। इस झगड़े की वजह से धीरे धीरे यह पेड़ कमजोर को जायगा और फिर एक दिन टूट कर  गिर जायेगा। जैसे ही  तुम उड़ना सीख जाओगे हम भी यहां से चले जायेंगे।
गौरय्या की बात पेड़ के सभी अंगों ने सुनी और उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ। वे समझ गए कि आपस उनके मिल-ज़ुल कर रहने की वजह से वह पेड़ इतना सुन्दर और आकर्षक बना हुआ था ,जो उनके झगड़े से मर जायेगा।
अब फिर से सभी अंग एक दूसरे के साथ मिल-ज़ुल कर हंसी खुशी रहने लगे और पेड़ फिर से हरा भरा हो गया। गांव वाले भी अब वहां फिर से आने लगे और गौरय्या भी वहां से नहीं गयी। जब यह बात और पक्षियों को पता लगी तो वे भी दुबारा उस पेड़ पर रहने आ गए।

आप कतार में हैं

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गृह-कलह

हमारे देश के एक प्रदेश में जनता से बहुमत पाने के बाद भी विजयी दल सत्ता के बंटवारे को लेकर इस कदर अड़ गए कि सरकार  ही नहीं बन पा रही। तो दूसरी तरफ राजधानी में वकील और पुलिस जिनका काम जनता को न्याय दिलाना है, खुल कर आमने सामने आ गए और जनता बेचारी न्याय को तरस रही है ।
लोकतंत्र में साथ काम करने वाले घटकों का किसी बात को लेकर अलग अलग दृष्टिकोण रखना एक स्वस्थ व्यवस्था की निशानी है। पर अगर बात इस हद तक बिगड़ जाय कि ,जनता , जिसके प्रति दोनों की जबाबदेही है ,ही उपेक्षित होने लगे तो यह बीमारी के लक्षण हैं।

अगर इसे समय रहते न रोका गया तो जनता कि स्तिथि उस बच्चे जैसी हो जाएगी जिसके माता-पिता ही आपस में लड़ते झगड़ते रहते हों। इससे वच्चे का व्यक्तित्व तो प्रभावित होगा ही,उसके माता-पिता उसकी नज़रों में अपना सम्मान खो देंगे जो एक दुखदायी स्तिथि होगी।

न जाने कब सत्ता के गलियारे में दौडनेवाले इस कटुसत्य को पहचान पाएंगे?

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