गृह-कलह

हमारे देश के एक प्रदेश में जनता से बहुमत पाने के बाद भी विजयी दल सत्ता के बंटवारे को लेकर इस कदर अड़ गए कि सरकार  ही नहीं बन पा रही। तो दूसरी तरफ राजधानी में वकील और पुलिस जिनका काम जनता को न्याय दिलाना है, खुल कर आमने सामने आ गए और जनता बेचारी न्याय को तरस रही है ।
लोकतंत्र में साथ काम करने वाले घटकों का किसी बात को लेकर अलग अलग दृष्टिकोण रखना एक स्वस्थ व्यवस्था की निशानी है। पर अगर बात इस हद तक बिगड़ जाय कि ,जनता , जिसके प्रति दोनों की जबाबदेही है ,ही उपेक्षित होने लगे तो यह बीमारी के लक्षण हैं।

अगर इसे समय रहते न रोका गया तो जनता कि स्तिथि उस बच्चे जैसी हो जाएगी जिसके माता-पिता ही आपस में लड़ते झगड़ते रहते हों। इससे वच्चे का व्यक्तित्व तो प्रभावित होगा ही,उसके माता-पिता उसकी नज़रों में अपना सम्मान खो देंगे जो एक दुखदायी स्तिथि होगी।

न जाने कब सत्ता के गलियारे में दौडनेवाले इस कटुसत्य को पहचान पाएंगे?

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