गुस्ताख़ मजनू



 एक बार हमें भी सपनो में स्वप्न सुंदरी दिखाई दे गयी
और इतना ही नहीं, उसने हंस कर पूँछ भी लिया
कि बताओ न जरा
इन कपड़ों में मैं कैसी लग रही हूँ?

हमारा कवि-हृदय हमेशा की तरह
मन ही मन तरह तरह के जबाबों  के बारे में सोचने लगा
पहला जबाब हमारे दिमाग में ये आया
कपड़ों का क्या है, तुम तो कुछ भी पहन लो हमें हमेशा ही अच्छी लगोगी
इसके साथ ही दूसरी लाइन भी जहन में आयी कि
तुम्हें कपड़ों को पहन कर आने की जरूरत ही क्या थी 
पर इस लाइन को में सेंसर बोर्ड के डर से जुबान पर ला नहीं पाया

फिर सोच कर देखा और कपड़ों का विचार कर दूसरी लाइन यूँ बनाई
इन कपड़ों की किस्मत है कि इन्हें तुम्हारा बदन छूने को मिला है

अब थोड़ी सी हिम्मत और आ चुकी थी तो
हमारे अंदर के आशिक ने एक और लाइन गढ़ी
और मन ही मन अपने आप से पढ़ी
  तुम्हें देख कर तो गुस्ताखी करने को जी चाहता है 

हम समझ नहीं पाए की उन्हें हमारा कौन सा जबाब चाहिए था ?

पर स्वप्न सुंदरी को भला इतना समय कहाँ कि वो सिर्फ हमारे सपनो में ही बैठी रहती
वो हमारी हसरतों का फालूदा कर, इतनी देर में तुनक कर हमारे सपनो से ही चल दी

पर हम भी कहाँ मानने वाले थे
जो बातें उससे कहनी थी
वो सब आपको बताने बैठे हैं  
इसी विषय पर कविता बना डाली
दाद दो हमारी, हम नज़र के बड़े पैने हैं 

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