रिश्ते
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किसी ने हमसे पूछा,
‘रिश्ते बनते हैं, या फिर बनाये जाते है?’
हमने जबाब दिया ,
’पता नहीं, हम तो बस निभाए जाते हैं’।
खून के रिश्ते तो ,मेरे
दोस्त, रेडीमेट आते हैं,
हम नहीं ,बल्कि हमारे डीएनए इनको बनाते हैं,
न तो मैं अपना बाप बदल सकता
हूँ,
न ही बेटा अपनी मर्जी का
चुन सकता हूँ,
इसीलिये इन्हें निभाने मैं
ही भलाई है,
वर्ना होती बड़ी जग हंसाई है।
रिश्तेदारी की बात यहीं
ख़त्म नहीं होती,
करारनामे के तहत भी बन सकती
है जोड़ी,
मैं अपनी पत्नी और और बॉस
चुनकर,
एग्रीमेंट के चक्रव्यूह
में घुस तो सकता हूँ,
पर अभिमन्यु की तरह बाहर
निकलने के लिए,
फिर बाद में अपना सर धुनता
हूँ,
ये रिश्ते निभाने में अच्छे
अच्छों के पसीने छूट जाते हैं,
इनके असली रंग रिश्ते बन
जाने के बाद ही समझ में आते है।
पर श्रेष्ठम रिश्ते तो मन
से बनाये जाते हैं,
और लोकलाज की परवाह किये
बगैर निभाए जाते हैं,
दैहिक आकर्षण से इतर ,ये अलौकिक बन जाते है,
तभी ये ‘राधा-कृष्ण’ की जोड़ी सा सम्मान पाते है।
नेताजी
हमने अपने फुटबॉल क्लब के फ़ाइनल मैच में
स्थानीय नेताजी को मिन्नत कर के बुलवाया
उन्हें समारोह का मुख्य अतिथि बनाया और
पुरे डेढ़ घंटे का मैच भी दिखलाया
खेल ख़त्म होने के बाद
हमने उन्हें माइक पकड़ाया
पर वहां भीड़ को देख कर
वो जा कह गए
उससे हमारा सर चकराया
उन्होंने कहा,'मुझे बताया गया की इस प्रतियोगिता में बहुत सी टीम खेलने आईं है.'
पर मेरा दिल व्यतिथ है ये देख कर कि सिर्फ दो ही टीम फ़ाइनल
में पहुँच पाईं है.
मैं कल ही खेल मंत्री से मिलूंगा
और ऐसी व्यवस्था कर दूंगा
कि ज्यादा से ज्यादा टीम फ़ाइनल खेल पाएं
दलितों और वंचितों की की कोई भी टीम इससे वंचित न रह पाएं
उससे भी ज्यादा तकलीफ
मुझे यह देख कर हुयी
कि बाइस खिलाडियों
के बीच एक ही थी मुई
ये देख कर मेरा मन भीतर ही भीतर सड़ रहा है कि
इतने सारे लोगों को एक ही फुटबाल से काम चलना पड़ रहा है.
मंत्री जी से कह कर ऐसी व्यवस्था कराऊंगा
कि अगली बार जब मैं यहाँ आऊंगा
तो हर एक खिलाड़ी को अपनी अपनी
फुटबाल से खेलता पाऊंगा
मैं तो आपका सेवक हूँ
क्या अपने लोगों के लिए इतना भी न कर पाऊंगा?
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