पोस्टमार्टम

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नवीन ने नयी कार क्या खरीदी बधाई देने वालों का ताँता सा लग गया। हर कोई आकर उसे  नयी कार की बधायी देता ,मिठाई  मांगता और फिर लगभग एक जैसे सवालों की झड़ी लगा देता,"कितने की ली? क्या एवरेज देती  है? साथ में क्या क्या फ्री मिला? कितनी रिबेट दी ?

इन सवालों का जो भी जबाब वह देता, बदले में लोग उसे ज्ञान बांटने लगते। पहले तो दाम सुन कर लोग तरह तरह की बातों का हवाला देते की कैसे वह कम पैसे में इसी कार को खरीदने से चूक गया। जमना मौसी का लड़का इसी कार कंपनी में दिल्ली में काम करता है और वह कम से कम दस प्रतिशत दाम कम तो करा ही देता। सुधा आंटी के मुताबिक एक खास बैंक के क्रेडिट कार्ड से पेमेंट करने से भारी छूट और कैश-बैक मिलता। मालती मौसी के पड़ोसी के साले जो इन्कमटैक्स इंस्पेक्टर हैं , अपने प्रभाव से पचास हज़ार रूपये तक काम करा सकते थे। और मुनमुन के हिसाब से तो मुझे बारगेन करना नहीं आया , उसे साथ ले चलते तो वह बीस पच्चीस हज़ार दाम काम करा देती और कई फ्री चीज़ भी साथ में लेकर आती।

और एवरेज की बात पर तो सबने ऐसा अहसास कराया कि उसने बिलकुल  ही गलत मॉडल चुन लिया था ,हालाँकि उसने अपनी पत्नी के साथ मिल कर गाड़ी की सभी स्पेसिफिकेशन्स पर अच्छा खासा रिसर्च और मार्केट-सर्वे किया था। गुप्ताजी के मुताबिक इस दाम पर इससे अच्छे एवरेज देने वाली बाजार में कितनी ही गाड़ियां थीं (पर नाम वो एक का भी नहीं बता पाए)। राकेश भाईसाहब के मुताबिक मुझे खुद गाड़ी चला कर एवरेज नापना था और अगर जितना कंपनी ने दावा किया है उससे काम निकला तो उपभोक्ता फोरम में मुक़दमा करना चाहिए।

शर्मा अंकल के हिसाब से गाड़ी लेते वक्त सिर्फ यह देखना चाहिए कि एवरेज कितना देती है ,बाकी की सब बातें तो बेकार हैं। शालिनी मेडम और चंद्रप्रकाश को गलती से मैने ऐवरेज की संख्या जो मैंने एक बार अनुमान लगाया था बता दी। बस, फिर क्या था, दोनों ही मुझे   ऐसे देखने लगे जैसे मैं कोई बड़ा मैच हार कर आ रहा हूँ। न जाने कहाँ कहाँ से आंकड़े निकाल कर और न जाने कौन कौन से गणित के फार्मूले लगा कर उन्होंने सिद्ध कर दिया की मैं एक महामूर्ख हूँ जो इतनी कम एवरेज देने  गाड़ी खरीद लाया हूँ। और अब मुझे जिंदगी भर पेट्रोल का ज्यादा दाम चुकाना पड़ेगा।

इन सब बातों से मुझे ऐसा लगने लगा जैसे मेरी कार खरीदने की खुशियों का गला घुट गया और उसकी हत्या हो गयी हो। यही नहीं सब के सब जानने वाले और रिश्तेदार उस मरी हुयी खुशी की लाश का पोस्टमार्टम करने से भी बाज नहीं आ रहे अपनी अपनी तरह से। जिस उत्साह से मैं महंगी मिठाई बांटने के लिए लाया था वह फुस्स हो गया और इतनी अच्छी मिठाई का स्वाद भी कसैला लगाने लगा। अब तो लोगों को बताने में भी डर  लगने लगा कि हमने नयी कार ली है।

शाम को उसने इत्मीनान से सोचा ,"क्या मैं अब कार की जो कीमत अदा की है उसको वापस ले सकता हूँ या फिर गाड़ी जो भी माइलेज देती है उसे बदल सकता हूँ? फिर इन बातों के बारे में अब सोचने से क्या होगा भला? दूसरे सोचते हैं तो वह उनकी समस्या है। मैं क्यों इन बातों में अपना दिमाग खराब करूँ?"

उसने निश्चय कर लिया , “अब मैं अपनी खुशियों का और पोस्टमार्टम नहीं होने दूंगा। मेरी ख़ुशी सिर्फ मेरी है और उसे मैं अपने परिवार के साथ बाँट कर मनाऊँगा।

उसने अपनी पत्नी को आवाज दी,"रानी, बच्चों को तैयार कर देना, आज हम लॉन्ग ड्राइव पर जा रहे है और खाना भी बाहर खाएंगे "। यह सुनकर रानी के  चेहरे पर मुस्कान आ गयी और बच्चे भी खुशी से झूम उठे।

भारत के कलमकार

भारत के कलमकार पुस्तक में मेरी भी रचनाएं प्रकाशित हुईं




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