उस दिन से पहले
मैं भगवान् से हमेशा मन्नत माँगता था कि मेरे खोमचे पर भी खूब भीड़ हो.
वैसी ही भीड़ जैसी
नंदू और राधे के खोमचों पर अक्सर हुआ करती है. इसी भीड़ के दम पर वो लोग अक्सर
मेरा मजाक भी उड़ाया करते थे.
पर शायद उस जगह का
ही दोष था ये. इक्का दुक्का ग्राहक तो यहाँ अक्सर आ जाते थे पर खूब सारे नहीं
जिसका मुझे इंतज़ार रहता था. सिवाय उस दिन के जिसे मैं कभी नहीं भूलूंगा.
उस दिन मैं अपनी
छोटी सी बच्ची गीता को पहली बार अपने काम
की जगह लाया था क्योंकि वह इसके लिए कई बार जिद कर चुकी थी. पर ये शायद मेरी गलती
थी.
शुरू में तो वहां
और दिनों की तरह ही माहौल था और गीता से बतियाते हुए कब शाम गो गयी पता ही नहीं
चला . शाम होते होते धीरे धीरे न जाने कहाँ से अचानक भीड़ इकठ्ठी होना शुरू हो गयी
समझ में नहीं आया .शायद कोई बड़ी सभा अचानक ख़त्म हुयी थी पास में.
क्या खूब भीड़ थी. लगता था शायद वो दिन आ गया था जिसका
मुझे इंतज़ार था. गीता भी बड़ी खुश थी इतनी चहल पहल देख कर. मैं पूरा जोर लगा कर
अपना काम कर रहा था.
इसी बीच एक ग्राहक
की बेजा मांग पर में खीज गया और उसे स्पष्ट शब्दों में इनकार कर दिया.
बात तो छोटी सी थी
पर इस छोटी सी बात का बतंगड़ बन गया जिसमें मेरी कोई कोई गलती भी नहीं थी. लगता था
वो ग्राहक कोई नेता था और वहां मोजूद लोग उसको बहुत मानते थे.
उसके बाद जो कुछ
हुआ बड़ी तेजी से हुआ. कुछ लोग गाली गलोच पर उतर आये और पीछे से एक रेले ने आकर
उसका मेरा ही गिरा डाला. फिर क्या था जिसके हाथ जो लगा लेकर चलता बना. मेरे को तो
समझ में ही नहीं आया कि अचानक ये क्या हो गया. हादसे के वक्त मेरा सारा ध्यान तो
मासूम गीता को संभालने में था.
ये बात अब पुरानी
हो गयी है पर अब भी भीड़ देख कर याद आती है और चुभती है. अब भी मैं ईश्वर से प्रार्थना
करता हूँ कि मेरे खोमचे पर खूब सारे लोग आयें पर साथ में ये भी जोड़ देता हूँ की
सभ्य और भले लोग ही आयें.
जब भी में किसी
भीड़ का हिस्सा बनने लगता हूँ अब बड़ा डर सा लगता है.पहले जहाँ भीड़ में अपने आप को
सुरक्षित और ताकतवर महसूस करता था अब लगता है मुझसे कोई गलती न हो जाय जिसका
नुक्सान किसी गरीब को भरना पड़ सकता है.