शोध पत्र

अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा विश्विद्यालय में 'भारतीय  एवं विदेशी  भाषा साहित्य  में महाकाव्य (एपिक) की अवधारणा एवं उद्देश्य' विषय पर शोध पत्र प्रस्तुत किया 



भारतीय  एवं विदेशी  भाषा साहित्य  में महाकाव्य (एपिक) की अवधारणा एवं उद्देश्य
महाकाव्य का अर्थ
जैसा कि नाम से ही विदित होता है, महाकाव्य का अर्थ है एक ऐसा काव्य या कविता जो बहुत बड़ा है । पर हर बड़ी या लम्बी कविता महाकाव्य नहीं हो जाती । महाकाव्य का दर्जा पाने के लिए किसी काव्य ग्रन्थ को इस मानकों को भी पूरा करना पड़ता है  -
1.  यह समसामयिक न होकर किसी प्राचीन समय की घटनाओं पर आधारित होना चाहिए ,
2.  इसमें किसी महान या दिव्य चरित्र का वर्णन होना चाहिए,
3.  यह कोई कथा या गाथा भी होनी चाहिए । 
हिंदी तथा अन्य वैश्विक भाषाओँ के कुछ प्रमुख महाकाव्य
हिंदी के कुछ प्रमुख महाकाव्य हैं- रामायण (महर्षि वाल्मीकि) , महाभारत (वेद व्यास) , रामचरित मानस (गोस्वामी तुलसीदास) , साकेत (मैथिलीशरण गुप्त) , कामायनी (जयशंकर प्रसाद) हल्दीघाटी (श्याम नारायण पांडेय) , कुरूक्षेत्र (रामधारी सिंह दिनकर) , बुद्धचरित (अश्वघोष) , कुमारसंभव तथा रघुवंश (दोनों कालिदास रचित)  , पृथ्वीराज रासो तथा पद्मावत (दोनों जायसी रचित) ।  यूँ तो कुछ लोग चारों वेदों (ऋगवेद , यजुर्वेद अथर्ववेद , सामवेद) की गिनती भी महाकाव्य में करते हैं , पर कुछ विद्वान् इसे इस आधार पर महाकाव्य नहीं मानते कि इनमें कोई कहानी नहीं है सिर्फ उपदेश, प्रार्थना या विचार हैं ।
अन्य वैश्विक भाषाओँ  के महाकाव्य के उदाहरण है - पैराडाइज़ लॉस्ट  (जान मिल्टन) , एपिक  ऑफ़  गिलगमेश  (मेसोपोटामिया की पौराणिक कथा ) ,  दी डिवाइन एनचांटमेन्ट ( जॉननीहार्ट ) , दी डिवाइन कॉमेडी (दांते अलैहीएरी , इटली ) , दी ओडेसी (होमर, यूनान ) , फिरदावासि  (फ़ारसी) आदि
महाकाव्य की अवधारणा
कविता ओर कहानी साहित्य की दो अलग अलग विधाएँ हैं । हम सब अपनी अपनी माताओं से लोरी सुनते आये हैं जिसकी लयबद्धता और संगीत मन को शिथिल करके सुलाने में मददगार होता है। इसी तरह हम सब अपनी अपनी दादियों और नानियों से कहानियां भी सुनते आये हैं , जिनमें अजीब अजीब चरित्र और अविश्वसनीय घटनाएं होती हैं पर कोतुहल हमेशा बना रहता है और हर बात में एक छुपा हुआ सन्देश होता है (जो बात अकसर हम बड़े होकर समझ पाते हैं, उस समय बचपन में नहीं) । संभवतः किसी ज्ञानी ने , ‘माता की लोरी और दादी-नानी की कहानी’,  इन दोनों को मिला कर महाकाव्य जैसी कालजयी रचना की अवधारणा का अविष्कार किया होगा जो लोगों के अवचेतन मन की परतों में घुस कर अनेकों पीढ़ियों तक रुचिकर और प्रचिलित बनी रहे और प्रासंगिक भी । एक ओर जहाँ इसमें कविता की सहजता ओर भावनाएं होगी जिससे एक सामान्य व्यक्ति किसी दूसरे को आसानी से कह सके वहीं इसमें कहानी का रोमांच , घटनाओं की  उथल पुथल ओर चरित्रों कि संवेदनाएं भी प्रस्तुत  होंगी ।
महाकाव्य की रचना किसी एक भाषा , संस्कृति या देश तक सीमित नहीं है। इनमें प्राचीन रोमन, यूनान, मिसिसिपी या भारत की वैदिक संस्कृति पर आधारित काव्य कथाएं हो सकती हैं । ये अंग्रेजी, इतालवी ,फ्रेंच ,जर्मनी, जापानी या किसी और भाषा में लिखे हो सकते हैंइस तरह की रचना हर देश, जाति, धर्म , संस्कृति या समुदाय के साहित्य में  पायी जाती है । अंग्रेजी में इसे एपिक (epic) कहते हैं जिसकी उत्पत्ति ग्रीक शब्द, “epikos” से हुयी है जिसका अर्थ ही है काव्यात्मक कथा ।
महाकाव्य  रचने के पीछे छिपा उद्देश्य
यह प्रश्न भी विचारणीय है कि , ‘इस तरह की रचना को  बनाने  के पीछे कारण क्या रहे होंगे ?’
किसी महाकाव्य के स्वरूप का अगर बारीकी से विश्लेषण करें तो वह इस विशेष साहित्यिक रचना के उद्देश्य को इंगित करता मिलेगा। किसी भी काल खंड में अधिकांश साहित्य समसामयिक विषय , घटना और चरित्रों पर ही रचा जाता है । पर जब  अतीत की घटनाओं और चरित्रों पर आधारित रचना की बात होती है तो यह अतीत के गर्भ से कुछ विशेष विषयवस्तु को जीवित रखने का एक प्रयास होता है जो बहुमूल्य हो यह विशेष जीवन- मूल्य सही अर्थों और सन्दर्भों के साथ अगर संरक्षित नहीं किये गए तो संभवत: आने वाली नयी पीढ़ी नए-नए अविष्कारों की चमक-दमक और प्रभाव में उन्हें भुला डालेगी।
अगर विभिन्न महाकाव्यों का विश्लेषण करें तो यह बात स्पष्ट हो जाती है कि सभी महाकाव्य अपने अपने क्षेत्र या समाज के सांस्कृतिक मूल्यों पर बल देते मिलेंगे । इनमें नायक अथवा नायिका के माध्यम से उस संस्कृति के विशेष गुणों का वर्णन होता है और उस संस्कृति की बुराइयों को खलनायक या खलनायिका के माध्यम से बचने का सन्देश दिया जाता मिलेगा।
इससे यह बात समझ में आती है कि महाकाव्य का उद्देश्य निसंदेह किसी सभ्यता के सांस्कृतिक मूल्यों को पीढ़ी दर पीढ़ी संरक्षित करना होता है जिससे हर आने वाली पीढ़ी का जीवन सुखमय रह सके । ऐसे जीवन मूल्य जो किसी देश, धर्म, जाति या समुदाय विशेष की प्रगति ओर अस्तित्व की सुरक्षा में सहायक हों उनको सुरक्षित रखने के उदेश्य से ही महाकाव्य की अवधारणा अस्तित्व में आयी होगी
महाकाव्यों का अविष्कार शायद एक समाज से जुड़ी अभिव्यक्तियों को प्रचारित करने का एक तरीका था। इन साहित्यिक निर्माणों के माध्यम से, उनकी सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक फैलाना संभव था ।
महाकाव्य में महान चरित्रों की बाध्यता
जब कोई रचनाकार किसी समसामयिक विषय पर रचना का निर्माण करता है तो उसके लिये ऐसे चरित्रों के माधयम से अपनी बात कहने व समझने में आसानी होगी जो आम जन मानस  या सामान्य व्यक्ति हों , क्योंकि ऐसा होने पर ही पाठक उन चरित्रों से एक का सहजता का अनुभव करता है और अपने वास्तविक जीवन के व्यक्तियों में उसे उन चरित्रों की झलक दिखाई देती है।
पर जब किसी रचनाकार को युगों पहले के चरित्रों और पात्रों को जीवित करना होता है तो वह उस युग के कोई सामान्य व्यक्ति नहीं हो सकते , क्योंकि वर्तमान समय में प्राचीन समय की सामान्य गाथा उबाऊ , अरुचिकर या फिर हास्यास्पद भी लग सकती है, क्योंकि समय बीतने के साथ साथ मानव जाति अभूतपूर्व गति से प्रगति करती जाती है। ऐसी स्तिथि में यह अति आवशयक हो जाता है कि अपनी बात ऐसे चरित्र के माध्यम से की जाये जो उस संस्कृति के महा नायक या दिव्य चरित्र हों और इस कारण लोगों में उन चरित्रों के बारे में रूचि और कोतुहल पहले से ही बना हुआ हो।  इसलिए देखा गया है कि महाकाव्य के पात्र अकसर पौराणिक देवी या देवता इत्यादि अलौकिक चरित्र होते हैं।
महाकाव्य की कथावस्तु
महाकाव्य की कथावस्तु न तो पूर्ण रूप से  शुद्ध ऐतिहासिक यथार्थ होती है और न ही सर्वथा काल्पनिक होती है । महाकाव्य को एक तरह का पौराणिक इतिहास भी कह सकते हैं। साथ ही उसमें यथार्थ से भव्यतर जीवन का अंकन होता है।  भव्यता एवं गरिमा किसी महाकाव्य के कथानक की शैली के मूल तत्व हैं।  एक महाकाव्य केवल आकार में ही महा या व्यापक नहीं होता बल्कि उनमें जीवन का सर्वांग-चित्रण रहता है।  महाकाव्य की कथा-परिधि में जीवन के समस्त सामाजिक, राजनीतक पक्ष एवं आयाम और उनके परिवेश रूप में विभिन्न दृश्यों और रूपों का समावेश रहता है। ये सभी वर्णन साधारण जीवन की क्षुद्रताओं से मुक्त एक विशेष स्तर पर अवस्थित रहते हैं। किसी भी महाकाव्य के रचियता के लिए यह एक बड़ी चुनौती होती है की वह अपने कथानक में कैसे उस समाज के लिए सबसे महत्वपूर्ण क्षणों, सबसे अधिक प्रतिनिधि पात्रों और सबसे अधिक प्रासंगिक मूल्यों और गुणों का उल्लेख करे। एक महाकाव्य के कथानक के भीतर दार्शनिक प्रस्ताव हो सकते हैं जिन्होंने संभवतः एक पीढ़ी की नैतिक नींव रखी है महाकाव्यों के माध्यम से,  इन मूल्यों को सिखाना संभव है वे आम तौर पर उस लोगों के जीवन के पहलुओं का वर्णन करते हैं: रीति रिवाज,  धार्मिक परंपराएं या सांस्कृतिक अभिव्यक्ति
महाकाव्यों के रचयिताओं को नमन
हमारी संस्कृति में रामायण और महाभारत हजारों वर्ष बाद भी न सिर्फ प्रासंगिक बने हुए हैं बल्कि शोध का केंद्र भी । यही नहीं, उनमें  वर्णित चरित्र करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणा का श्रोत भी बने हुए हैं । इसी तरह अन्य देश व संस्कृति में उनके महाकाव्य व महा-चरित्र भी वहां के जनमानस को प्रभावित करते होंगे।
धन्य हैं वे विलक्षण ,दूरदर्शी और अद्भुत रचनाकार जो समर्पित भाव से  अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए उपहार स्वरूप इन ग्रंथों की रचना करते है।
ऐसे मनीषियों को कोटि कोटि नमन और वंदन !
महाकाव्य का भविष्य ?
प्राचीन  काल से सभ्यताओं ने  सांस्कृतिक मूल्यों को महाकाव्य के रूप में संरक्षित किया है ,क्योंकि कथा और काव्य अभिव्यक्ति के सर्वमान्य और अति प्रचलित विधाएँ थी।  पर तेज गति से भागते यथार्थवादी और वैज्ञानिक वर्तमान युग में पुस्तक और कविता अपना महत्त्व और उपयोगिता के लिए संघर्ष करती सी प्रतीत होती है।  आज के दौर में फिल्म नामक अभिव्यक्ति की विधा ने रुपहले परदे पर इठलाती आकृतियों ने हर किसी को अपने मोहपाश में बांध रखा है। अब तो इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से इन फिल्मों को दीर्घ कल तक सहेजकर रखना संभव हो सका है जिसमे काल्पनिक चरित्र और घटनाओं  को परदे पर उतरा जा सकता है और पार्श्व संगीत को भी इसमें समाहित किया जा सकता है। भाषा  की समस्या को भी इसमें डबिंग या शीर्षक के द्वारा सुलझा लिया जाता है। कौन जाने , आने वाले समय का महाकाव्य इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर एक फिल्म के रूप में लिखा जाय !
सन्दर्भ

दीपक दीक्षित

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