अनुशासन






हाल ही में बिजली के ग्रिड फेल हुए और करोड़ो लोगो को उसका खामयाजा भुगतना पड़ा. सुनते है कि कुछ राज्यों के तय सीमा से ज्यादा बिजली खींचने से ऐसी स्थिति का निर्माण हुआ .

अगर ध्यान से देखें तो इस तरह की घटनाये हमारे यहाँ आम बात है. किसी संस्था के

परीक्षा फल के समय उस संस्था की वेब-साईट क्रेश हो जाती है , ‘तत्काल’ के समय रेलवे की वेब-साईट क्रेश हो जाती है, किसी अच्छी नोकरी के इश्तेहार भर से इतने उम्मीदवार आ जाते है कि साक्षात्कार के समय भगदड़ मच जाती है, बस के आने तक तो लोग लाइन में लगे रहते है पर बस के आते ही लाइन तोड़ कर दरवाजे पर झपटते है, मोबाइल ऑपरेटर क्षमता से अधिक कन्नेक्शन दे डालते है और उपभोक्ताओ की बात ठीक से नहीं हो पाती, व्यस्त बाज़ार में पार्किंग और मूत्रालय सीमित होने से लोग अपनी मर्जी से किसी भी जगह को पार्किंग और मूत्रालय में बदल डालते है.



व्यवस्था तो बनी होती है पर समय पर काम नहीं आती.

इसका कारण क्या है ?



‘व्यवस्था ही लचर है’, ऐसा कहकर क्या अपनी जिम्मेदारी से बचा जा सकता है? ये सही है कि हमारे देश में व्यवस्था बनाते समय अधिकतर किताबी ज्ञान का उपयोग किया जाता है व्यावहारिक का नहीं. समय के अनुसार पुरानी व्यवस्थाओ के पुनर्विचार में भी हम लोग कंजूसी बरतते है.

पर क्या उस व्यवस्था का पालन करने वाले नागरिको की कोई जिम्मेदारी नहीं?

क्यांकि अक्सर हममें व्यवस्था के प्रति विश्वास की कमी होती है और असली समय पर

हम अमर्यादित होकर व्यवस्था को की अव्यवस्था में बदल डालते है इसलिए जरूरत अनुशासन की है. थोडा थोडा इन्तजार कर लें, बेसब्र और असभ्य ना बनें अपनी पारी का इंतजार कर लें.

क्या आपके आस पास ही एसी कोई घटना घट रही है ?

ऐसे में क्या आप जरा सा अनुशासान दिखने की हिम्मत रखते है ?



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