ढक्कन सिंह

ढक्कन सिंह का असली नाम क्या था शायद अब उसे भी याद न हो. सब उसे इसी नाम से बुलाते थे.
पार्टियों में वो अक्सर नज़र आता था. उसकी लच्छेदार बाते सुनाने के लिए उसे अकसर पार्टियों में बुलाया जाता था और कभी कभी वो बिना बुलाये भी घुसपेठ कर डालता था.
शराब पीने की नौबत आने से पहले ही उसे बस सूंघते ही नशा हो जाता था. एक ढक्कन पी कर तो वो आउट हो जाता था और इसीलिए उसका नाम ढक्कन सिंह पड़ा. 
बाकी लोगों की तरह वो किसी ख़ास ग्रुप के साथ नहीं रहता था बल्कि हर ग्रुप में आराम से घुल मिल जाता था.
सिचुएशन कोई भी हो उसके पास सुनाने के लिए एक मसालेदार कहानी या किस्सा रहता था और कभी कभी जब वो मूड में होता था फड़कता हुआ शेर भी सुना डालता था.
नाचने के लिए तो वो हमेशा तय्यार रहता था और अक्सर मटकता रहता था. बातें करते वक्त भी उसे चेहरे बना बना कर और हाथ हिला हिला कर बोलने की आदत थी.
उसको सबने हमेशा ही भीड़ के हिस्से की तरह देखा पर शायद बहुत कम लोगों को पता हो की वो अन्दर से कितना अकेला था. दूसरों को खुश रखता था और अपने गम भुलाता था. उसे अपने मा बाप का कुछ पता नहीं था . अनाथालय में उसका बचपन बीता और दूसरों की सेवा में लगना उसकी मजबूरी थी जिसे उसने अपना स्वभाव बना लिया था. वो एक सच्चा जोकर था वो जो हर हाल में दूसरों को हँसाता था.
ऐसे नमूनों को भला कैसे भुलाया जा सकता है.


My new eBook