दोगलेपन से मुक्ति

दोगलेपन के जीवन के हम आदी हो गए हैं. वैसे तो हम अपने को देशभक्त और जिम्मेदार नागरिक समझते हैं पर टैक्स चोरी के नए-नए तरीके आजमाने को हमेशा तैयार रहते हैं. हमें अपनी ही सरकार पर विश्वास नहीं कि वह टैक्स की कमाई से न्याय करेगी. हर परिवार या गुरु प्रकट रूप से तो भाई चारे और अमन का पाठ पढ़ाता है पर अंदर से दूसरों को रोंद कर आगे निकलने के लिए हमें उकसाता है और तैयार भी करता रहता है. यही सब सीखते समझते हम अक्सर बड़े होते हैं. भ्रष्टाचार, अशांति, हिंसा व् व्यभिचार इसी दोगलेपन से निकली समस्याएं हैं
आमतौर पर चीजों को दो तरह के चश्मे से देखते हैं एक अपने / अपनो के लिए तो  दूसरा  किसी और  के लिए. पर एक सच्चे योगी के मन में अपने पराये का ये भेद नहीं रहता है. वह अपने से भी उसी तरह का व्यवहार करता है जैसे वह और किसी इंसान के साथ करता.
सादगी को एक कमजोरी और गाली के रूप में देखा जाने लगा है, पर यही हमारी असली शक्ति है और हर समस्या से निजात दिलाने की ताकत रखती है

योग की तकनीक का निष्ठा पूर्वक मन से पालन करने पर हमें दोगलेपन से मुक्ति मिलती है. यही सच्चा निर्वाण है. 
छत्तीसगढ़ की पत्रिका 'नवांकुर' ने भी मेरे लेख 'अष्टांग योग' को प्रकाशित किया.
यह लेख इस ब्लॉग की एक पोस्ट के रूप में भी उपलब्ध है.

भोपाल में मध्य प्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, भोपाल की पत्रिका 'अक्षरा' ने मेरा लेख 'अष्टांग योग ' प्रकाशित किया.




किसी भी रचनाकार को उसकी रचना को ज्यादा से ज्यादा लोगों के सामने लाने  से से आत्मसुख मिलता है. एक शब्दकार के लिए उसकी कृति का प्रकाशित होना एक बड़ी घटना है जिसका उसे सदा इंतज़ार रहता है..

इसी विचार के अधीन एक नयी श्रंखला आरम्भ कर रहा हूँ-'प्रकाशित'.

यहाँ में उन पलों का आनंद सहेजूंगा जब किसी मध्यम के द्वारा मेरी किसी कृति पर प्रकाश डाल कर उसे प्रकाशित किया गया आर्थात लोगों के सामने लाया गया.

आरम्भ अपने बचपन की कुछ रचनाओं से कर रह हूँ.

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