संस्कारों कीआत्मा


मेरी यह रचना प्रतिलिपि पर प्रकाशित हुयी।
पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें ।

मन का मायाजाल


मन शब्द का प्रयोग हम अक्सर करते हैं. आइये अब इस बात पर चर्चा करते हैं कि ये मन आखिर है क्या बला. पहले हम मन के उन विशिष्ट गुणों को देखते हैं जो सर्वमान्य हैं फिर इस मन नाम की चीज को समझने की कोशिश करते हुए यह जानते है की इसका अपने फायदे के लिए सही उपयोग कैसे किया जाय.
मन के बारे में आम मान्यताएं -
मन विराट है- मन का कोई ओर-छोर नहीं है. यह अकल्पनीय रूप से विराट है. इसमें कुछ भी समा सकता है- जो भी चीज हमारी कल्पना की पकड़ में आ जाय.
मन चंचल है- जैसे समुद्री लहरें और बादल  अपना रूप और आकार बदलते रहते है उसी तरह से मन भी  भी एक स्थान पर स्थिर नहीं रह सकता. इसका रूप बदलता रहता है.
मन बांधता है- हम सब अपने मन से बंधे हुए हैं और इसके मुताबिक ही परिणाम चाहते हैं. इससे भाग कर हम कहीं नहीं जा सकते.
मन के के हारे हार है मन के जीते जीत – अगर हम कोई काम मन से नहीं करना चाहते तो उसमें सफल नहीं हो सकते और अगर मन में जीतने की ठान लें तो कोई हरा नहीं सकता.
आइए इन मान्यताओं  को ध्यान में रखते हुए अपनी रोजमर्रा की जिंदगी से किसी उदाहरण की सहायता से मन की बनावट को समझने की कोशिश करते हैं.
कल्पना कीजिये अपने मनपसंद द्रश्य-पटल  (स्क्रीन) के बारे में. यह आपके मोबाइल फोन का, आपके टीवी , कंप्यूटर या सिनेमा का स्क्रीन हो सकता है जिस पर तेजी से दृश्य या चित्र बनते और बिगड़ते रहते है.
ये कौन चित्रकार है??
जरा सोचिए  इन द्रश्यों को कौन बनाता है??
असल में इसको बनाने में दो ताकत एक साथ काम करती है.
पहली ताकत तो है एक कंट्रोल पैनल जो मोबाइल का कीपैड टीवी का रिमोट या कंप्यूटर का कीबोर्ड /  टचबोर्ड /माउस आदि हो सकता है जिसे आप अपने आप अपने हिसाब से चला कर अपनी इच्छा जाहिर करते है और क्या देखना या सुनना है उसका चुनाव करते है. पर यहाँ ध्यान रखने योग्य बात यह है कि चुन आप उसी में से सकते है जो आपको उपलब्ध हो या जो विकल्प (ऑप्शंस) उस मशीन को बनाने वाले ने आपको दिये है.
दूसरी ताकत है एक बाहरी शक्ति. यह आपकी मोबाइल या कंप्यूटर या इंटरनेट देने वाली हार्डवेयर या सॉफ्टवेयर कम्पनी  हो सकती है या टीवी चैनल हो सकती है या कोई सरकार और बड़ी ताकत जो यह तय करती है कि आप की सीमाएं क्या है और आपको क्या विकल्प और द्रश्य उपलब्ध कराये जायें .
अब कल्पना कीजिये कि डिस्प्ले स्क्रीन कोई चोकोर हार्डवेयर स्क्रीन न होकर जो भी द्रश्य बनते हैं वह आपके आस पास के  वातावरण या हवा में बनाते हैं. यह भी कल्पना कीजिये कि यह एक अति आधुनिक प्रक्षेपण (प्रोजेक्शन्स) है जिसमें महज दो नहीं बल्कि 5 आयाम है. (आमतौर पर (फिल्म,कम्पूटर या मोबाइल फ़ोन में) सिर्फ आवाज ही चित्रों के साथ मिश्रित होती है ( अतः इसमें दो ही आयाम हुए ), पर आप कल्पना कीजिये कि इस अति संवेदनशील व्यवस्था में चित्र और आवाज़ के साथ खुशबू ,स्पर्श स्वाद को भी मिश्रित किया जा सकता है.
अगर इस तरह की कोई व्यवस्था सचमुच हो तो उसका कंट्रोल पैनल (नियंत्रण पट्टिका) क्या होगा ? इस सवाल का एक सीधा जबाब नज़र आता है-‘हमारा दिमाग’. क्योंकि हमारा दिमाग कल्पनाओ को न सिर्फ बनाता है बल्कि उन्हें सच करने की शक्ति भी रखता है इसलिए वह ही इस प्रोजेक्शन का कंट्रोल पैनल होगा.
यह प्रोजेक्शन कोई काल्पनिक चीज नहीं है. यह एक वास्विकता है पर एक अलग धरातल पर . जैसे हमारा बायोलॉजिकल शरीर हड्डियों और मांस आदि का बना है, यह प्रोजेक्शन(अपने कंट्रोल पैनल के साथ) भी एक शरीर है जो एक चलचित्र की भांति बदलता रहता है.  इसे अलग अलग सन्दर्भ में अलग अलग नाम से पुकारा जाता है. जैसे पौराणिक कथाओं में इसे देवी देवताओं के शरीर के आवरण की तरह आभा मंडल के रूप में दिखाया जाता है.(आजकल विज्ञान की प्रगति के साथ किसी भी व्यक्ति के इस आभा मंडल या औरा को देखने के  के यंत्र भी बना लिए गए है और उनको समझने के लिए शोध कार्य हो रहा है .) बहुत सी अध्यात्मिक विधाओं में इसे  ‘भाव शरीर’ (भावनाओं द्वारा संचालित काल्पनिक शरीर) कहा गया है. असल में अनेको आध्यात्मिक व्याख्यानों में सात शरीर का उल्लेख मिलता है जिसमें हर शरीर एक बायोलॉजिकल शरीर का छाया शरीर है जिसका सञ्चालन किसी न किसी एक चक्र से जुड़ा है. पर हम अपने सन्दर्भ में, बायोलॉजिकल शरीर के अलावा सिर्फ एक और छाया शरीर या भाव शरीर की बात करते हुए इस रहस्यमयी शरीर को मन का नाम देना चाहेंगे. 

मन का मतलब माना हुआ

अत: मन कल्पना की वह अति संवेदनशील छवि या चलचित्र है जो आपने बना कर दिमाग में सहेज रखी है. इसमें आपकी भविष्य की सम्भावनाये भी हैं और और जो कुछ भी आप विगत समय में कर चुके हो उसका ब्यौरा भी है. वास्तव में इन दोनों का एक गुड़मुड़ जंगल है ये . हमारा दिमाग एक कंट्रोल पैनल है जो हमारे आसपास के वातावरण पर प्रक्षेपण करता है. हमारे अंदर की इच्छाएं/भावनाएं या जो भी हम चाहते है इस पर वातावरण और और समाज का दबाव रहता है जो हम से उम्मीद रखते है और इन दोनों ताकतों की कशमकश में मन का माया जाल बुना जाता है.
 आम तौर पर हम अपने तन यानी बायोलॉजिकल शरीर से जुड़े रहते हैं पर भावनाओ के आवेश में अक्सर अपने मन से जुड़ जाते है जैसे कभी कभी अपने मनपसंद फिल्म देखते समय हम किसी पात्र /चरित्र या फिर किसे घटना/परिवेश से जुड़ जाते है और थोड़ी देर के लिए अपनी पहचान भी खो देते हैं. इन दोनों शरीरों के बीच की कड़ी है हमारा दिमाग. योग विद्या से से इन दोनों शरीरों में तालमेल बिठाया जा सकता है अन्यथा ये अलग अलग स्तर पर काम करते रहते हैं और अक्सर जीवन में परेशानी और उलझन का कारण बनाते हैं.
मन में जो कुछ भी चलता रहता है उसका कुछ हद तक तो हमें पूर्वानुमान रहता है पर कभी कभी उसे जान कर हम स्वयं भी अचंभित हो जाते है. जो कुछ भी हमने या तो अपनी इच्छा से मान लिया है या हमें बाहरी शक्तियों द्वारा मनवा दिया गया है वही हमारा मन है .
इस ‘दिमाग द्वारा संचालित माने हुए भाव शरीर’ या मन से भावनाओं के प्रभाव से हम जुड़ते रहते हैं और अक्सर इस प्रक्रिया में भटकते भी रहते है. इस भटकन का कारण है कि अलग अलग समय पर जो चीजें हम अपने मन में बैठा लेते हैं उनमें सामंजस्य या तालमेल नहीं बैठा पाते हैं और भावनाओं की कशमकश में परेशान होकर रह जाते है. योग में प्रत्याहार के द्वारा इस समस्या का समाधान बताया गया है जिसमे हम द्रष्टा के रूप में अपने ही शरीर और उसकी गतिविधियों को बिना उनमें लिप्त हुए देखने का प्रयास करते है.

अलग धरातल ; अलग तरह का खेल

तन से तो केवल रस्म अदायगी या कृत्य किये जा सकते हैं जिनका प्रभाव बड़ा सीमित दायरे तक होता है पर मन में कल्पनाओ के विचित्र साम्राज्य में हम कुछ भी बैठा सकते हैं और ऐसे कृत्य जो शारीरिक रूप से असंभव प्रतीत होते है मन की सहायता से आसानी से किये जा सकते है. मन से सिर्फ पूरी ताकत और निष्ठां से चाहना भर ही होता है उसके बाद जहां हम जाना चाहते है चाहते ही वहां पहुंच जाते है. इस क्रम में कर्म तो शरीर द्वारा अपने आप हो जाते है. मन की जादुई शक्ति को शायद हम सभी अच्छी तरह से जानते है. तन का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन तो तब होता है जब यह मन की छाया की तरह पीछे चलता है और योग विद्या इसमे हमारी सहायता कर सकती है.

(मेरी  पुस्तक 'योग मत करो योगी बनो' से  )

मुर्गे की टांग


मेरी यह रचना प्रतिलिपि पर प्रकाशित हुयी।
पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें ।

नीलकंठ


मेरी यह रचना प्रतिलिपि पर प्रकाशित हुयी।
पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें ।

दल-बदलू

मेरी यह storymirror.com पर प्रकाशित हुयी।
पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें ।

योग की तकनीक - दीपक दीक्षित

मेरी यह रचनारचनाकार पर प्रकाशित हुयी।
पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें ।

हम सब सैनिक


मेरी यह रचना प्रतिलिपि पर प्रकाशित हुयी।
पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें ।

मृत्यु दिवस


मेरी यह रचना प्रतिलिपि पर प्रकाशित हुयी।
पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें ।

अप्रत्याशिक


मेरी यह रचना प्रतिलिपि पर प्रकाशित हुयी।
पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें ।

My new eBook