'आथर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया' का वार्षिक महा अधिवेशन कानपूर में हुआ जिसमें मैंने 'हिंदी और मीडिया'' विषय पर निम्नलिखित शोध पत्र पढ़ा.
हिंदी भाषा
हिंदी भाषा लगभग एक हजार साल की सम्रद्ध भाषा है जिसके रूप को इसके अनेकों प्रेमियों ने समय समय
पर सजाया और संवारा है। इसे हमारे देश की राजभाषा के रूप में 14 सितम्बर सन् 1949 को स्वीकार किया गया जिसकी स्मृति में इस दिन को ‘हिन्दी दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
सदियों से एक साहित्यिक
भाषा के रूप में हिन्दी ने अपनी श्रेष्ठता का परिचय दिया है और सामान्य बोलचाल में
भी इसका प्रसार व्यापक है। वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार हमारे देश में लगभग 42
करोड़ लोग हिंदी भाष बोलते या समझते हैं। दुनियां भर में हिंदी बोलने वालों की
संख्या लगभग 50 करोड़ से भी अधिक आंकी गयी है।
मीडिया
मिडिया
का शाब्दिक अर्थ हुआ माध्यम । विषय के सन्दर्भ में संचार माध्यम अधिक सटीक होगा । इस
तरह शब्द, सूचना और आशय को एक व्यक्ति या व्यक्ति समूह से दूसरे को पहुँचाने के माध्यम
को मीडिया कहा जायगा।
कुछ दशक पहले तक मीडिया का अभिप्राय पत्र
/पत्रिकाएं या पुस्तकें माना जाता था और इसकी रचना करने वाला एक विशिष्ठ वर्ग ही
था। पर इलेक्ट्रॉनिक यंत्रों (टीवी /कम्पूटर /मोबाईल /टेबलेट आदि) के हमारी रोजमर्रा
की जिन्दगी में घुसपैठ के कारण इसका दायरा
बेहद बदल गया है । इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने और सभी प्रकार के मीडिया को निगल लिया है। इस नए मीडिया के
रचनाकार का दायरा भी विशिष्ठ वर्ग से फ़ैल कर आम जन हो गया है। यहाँ हर कोई एक
रचनाकार है जो अपनी बात सिर्फ उँगलियों की जुम्बिश से अनगिनत लोगों तक पहुंचा सकता
है ।
सोशल मीडिया के मकडजाल हम सभी उलझ चुके हैं
। इतना कुछ प्रकाशित ,प्रचारित और प्रसारित हो रहा है कि अपने काम की बात तक पहुँचना
ही एक समस्या बन गया है। दिन रात हम शब्द,
चित्र, वीडिओ और आवाज के अम्बार को मीडिया में फेंकते हैं और ग्रहण करते हैं पर
फिर भी संतुष्ट नहीं हो पाते। सब कुछ हमारे आस पास उपलब्ध है पर वह नहीं मिल पता
जो हम दिल से चाहते है। कबीर का दोहा –‘पानी बिच मीन प्यासी , मुझे सुन सुन आवत
हाँसी।’ इस स्थिति को सटीक तरह से दर्शाता है।
मीडिया का हिंदी पर प्रभाव
चीख पुकार और जल्दबाजी के इस दौर में हिंदी
भाषा का साहित्यिक वर्ग सिमटता जा रहा है और इसका लोकरंजन स्वरुप उभर कर सामने आता
जा रहा है। लोकतान्त्रिक परम्पराओं और बाजारीकरण के प्रभाव में जनता की मांग
सर्वोपरि हो जाती है और फिर वह हर बात को प्रभावित करने लगती है। हिंदी भाषा भी
इससे अछूती नहीं रह सकती। क्लिष्ट और नियमबद्ध भाषा
तेजी से बदल कर बोलचाल की भाषा बनाती जा है जिसमें अंगरेजी और अन्य भाषाओँ के शब्दों का स्वादानुसार समावेश भी रहता है।
हमारे देश में अभिव्यक्ति की आज़ादी के
वरदान और नए नए मिले इलेक्ट्रॉनिक खिलोनो के प्रयोग ने भाषा को शिथिल और सरल बनाकर
तेजी से बदल डाला है। पर यही बात देश की अन्य भाषाओँ पर भी लागू होती है।
हिंदी का मीडिया पर प्रभाव
हिंदी भाषा ने अपने विशाल जनाधार के बल पर मीडिया में अपनी एक विशिष्ठ जगह बना रखी है ।
इसके अपार श्रोता वर्ग को लुभाने और उससे धन अर्जन की होड़ में मीडिया भी कुछ कसर
नहीं छोड़ रहा। पर इस दुधारू गाय के दोहन की अनेक संभावनाएं अभी भी शेष है। मीडिया
की सुगम उपलब्धता के कारण हिंदी भाषी जन मानस अपनी संस्कृति को भी जीवंत रखने में
समर्थ हो सके हैं।
हिंदी का विकास
यूं तो हिंदी एक सम्रद्ध और प्राचीन भाषा है
और इसे हमारे देश की राष्ट्रभाषा का स्थान दिलाने के लिए अनेक प्रयास भी हो रहे
हैं पर कामकाजी या प्रयोजनमूलक हिंदी अपने शैशवकाल में ही है। कार्यालयों, शिक्षा,
विज्ञानं , उच्च अदालत अदि में आज भी हिन्दी अपनी पैंठ नहीं बना सकी है। इसके लिए
और अधिक प्रयास की आवशयकता है।
आने वाला समय में भाषा की
उपयोगिता
अंगरेजी में एक कहावत है- A picture is
worth 1000 words जिसका अर्थ हुआ की एक तस्वीर एक हजार शब्दों के बराबर क्षमता
रखती है । आज के टेक्नोलॉजी के दौर में हम एक नहीं बल्कि हजारों तस्वीरें पलक
झपकते न सिर्फ खींच सकते हैं वरन हजारों
लाखों लोगों को भेज भी सकते है। इस तरह की जादुई क्षमता को आमजन के हाथों में देने के कारण अब
सभी भाषाओँ की उपयोगिता अब धीरे धीरे सिमटने
लगी है पर निश्चय ही यह समाप्त नहीं हो सकती। एक से दूसरी भाषा का अनुवाद अब
मशीनों या कम्पूटर द्वारा उपलब्ध हो जाने के कारण भी यह स्तिथि उत्पन्न हुई है।
शब्दों का चुनाव अब लचीला हो गया है तथा इनकी घुसपेठ एक भाषा से दूसरी भाषा तक सरल
हो गयी है।
हिंदी और मीडिया का योग
मीडिया का खेल बड़े से बड़ा होता जा रहा है और
नित नए हैरतंगेज साधन सामने आते जा रहे हैं। देश और विदेशों में बसे करोंड़ों हिंदी
प्रेमियों को इस अवसर का भरपूर लाभ उठाना चाहिए और मेरी कामना है कि हिंदी को भी
मीडिया के साथ कदमताल करते हुए और सम्पन्नता की और अग्रसर होना चाहिए ।