योग-एक सम्पूर्ण द्रष्टि

दुनिया भर की सभ्यताओं को अगर मोटे तौर पर देखें तो एक विभाजन साफ़ नज़र आता है. एक तरफ अमेरिका और पश्चिम के देशों की व्यवस्था है जहाँ हर चीज को तर्क और विज्ञानं की कसौटी पर परखा जाता है और व्यक्ति के कर्म और उसके परिणामो को ही महत्त्व दिया जाता है. दूसरी तरफ भारत तथा अन्य पूर्वी देशों की सभ्यता सभ्यताएं है जहां व्यवस्था का आधार है विश्वास और आध्यात्मिक द्रष्टि रखते हुए भावना को अधिक महत्त्व दिया जाता है.

अक्सर इन दोनों व्यवस्थों की श्रेष्ठता को लेकर तकरार होते दिखते हैं. आमतौर पर आध्यात्म को विज्ञान का और विश्वास को तर्क का विरोधी मान लिया जाता है.

सभ्यताओं के बंटवारे की तरह ही हमारा व्यक्तित्व भी बंटा रहता है. एक तरफ कर्म आधारित फल देने वाला हमारा भोतिक शरीर तो दूसरी तरफ भावना आधारित उड़ान भरने वाला हमारा मन.

इन सब के मूल में है इंसानी दिमाग . 1981 में नोबेल पुरूस्कार विजेता स्प्लिट ब्रेन थ्योरी या बनते हुए दिमाग के सिद्धान्त’ के अनुसार हमारे दिमाग के दो अलग अलग हिस्से अलग अलग तरह के काम करते हैं. जहां बायां भाग तर्क और शब्दों पर आधारित गणनायें करता है दायाँ भाग चित्र और ध्वनि आदि पर आधारित कल्पनाएँ सजोता है और अनुमान लगता है . इन दोनों हिस्सों के बीच में एक सूक्ष्म नाडीतंत्र द्वारा सूचनाओं का आदान प्रदान होता रहता है. आक्सर हम इनमें से  कभी एक पक्ष हम पर हावी होता है तो कभी दूसरा. पलक झपकते के समय-अंतराल से भी बहुत कम समय में किसी एक पक्ष के नियंत्रण में स्तिथि पहुँच जाती है.

यहाँ समझने की बात यह है कि कल्पनाये /भावनाएं तथा तर्क /विश्लेषण एक दूसरे के विरोधी नहीं बल्कि पूरक है. दोनों को मिला कर देखने से ही एक अच्छी तसवीर बनती है जैसे बायीं और दायीं आँख से मिले दो अलग अलग द्रश्यों को मिला कर ३डी तस्वीर मिलाती है जो एक पक्षीय (बायीं या दायीं) से कहीं बेहतर हाती है. इसी तरह बांयें और दायें कान से सूनी गयी ध्वनि को मिला कर ही स्टीरिओ फोनिक ध्वनि बनती है जो उनमें से एक (दायीं या बायीं ) ध्वनि से बेहतर होती है.


योग हमारे दिमाग के दो हिस्सों से उत्पन्न सूचनाओं को बिना किसी एक से भी प्रभावित हुए तटस्थ रूप से मिला कर देखने की कला में हमें पारंगत करता है. एक योगी की द्रष्टि सम्पूर्ण और निष्पक्ष होती है और जीवन की घटनाओं से वह विचलित नहीं होता जबकि आम आदमी अक्सर एक पक्षीय द्रष्टिकोण रखने के कारण जीवन के उतार चढाव  के भंवर में ही फंसा रहता है. 

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