आत्मा और चक्र दिखाई क्यों नहीं देते ?


कुछ लोग आत्मा के अस्तित्व को इस आधार पर नहीं मानते कि यह तो दिखाई ही नहीं देती और शरीर में इसका स्थान निश्चित नहीं है .

ऐसे लोगों से मैं पूछना चाहूँगा कि क्या उन्होंने भारत सरकार को देखा है?
यह कहां है?
इसका पता क्या है?

क्या कहा, 7 रेस कोर्स रोड ,न्यू दिल्ली .
यह तो इसके प्रधानमंत्री के घर का पता है.
तो फिर राष्ट्रपति भवन
वह तो राष्ट्रपति , जो एक पद है उनका घर है
अच्छा फिर सुप्रीम कोर्ट
वह तो न्याय के लिए एक संस्था है
क्या कहा - सेना मुख्यालय?
वह तो फौजियों को आदेश देने की जगह है.
तो फिर संसद भवन में होगी.
वह तो एक जगह मात्र है.

वास्तव में इनमें से किसी एक में नहीं पर सभी स्थान पर लोग एक दायरे में रह कर मिलजुल कर एक व्यवस्था के रूप में काम करते हैं जो भारत सरकार कहलाती है. यह सरकार इस देश के जन जीवन को प्रभावित करती है. महत्वपूर्ण बात यह है कि चल रही है अभी और इसके लिए काम करने वाले और इससे  प्यार करने वाले लोग इसे मरने भी नहीं देंगे.

यही हाल हमारे शरीर और आत्मा का है. हमारे शरीर में असंख्य बॉडी सेल हैं जो शरीर को प्यार करते हैं करते हैं और उन्होंने उन्होंने तरह-तरह की व्यवस्थाएं बनाकर अपना अपना काम संभाला हुआ है हमारी आत्मा तो इन्ही सब का मिला जुला रूप है जो शरीर में ढूँढने से नहीं मिलने वाली.

इसी तरह लोग कहते दिखते हैं कि हमारे शरीर में चक्र दिखाई क्यों नहीं देते? वह लोग शायद उस तरह की कोई आकृति शरीर में ढूँढने की कोशिश करते हैं जैसी योग की कई पुस्तकों में इन चक्रों के बारे में लिखते समय दिखाई गयी है.

शायद वे लोग यह भूल जाते हैं कि हजारों साल पहले भाषा और बातचीत का तरीका आज जैसा नहीं था. अक्सर गूढ़ और रहस्य की बातें सांकेतिक रूप  से बताई जाती थी. हमारे शरीर की व्यवस्थों को चक्रों के नाम देकर उन्हें सांकेतिक रूप में चिन्ह दिए गए होंगे . अब उन चिन्हों को वैसे ही रूप में शरीर  में खोजने की बजाय हमें उनके पीछे के तत्व को समझने पर जोर देना चाहिए .

हजारों साल पहले भाषा आज जैसी परिष्कृत नहीं थी बल्कि संकेतिक थी.संकेत का मतलब यह नहीं की वह चीज देखने में भी वैसी ही होगी जैसा उस संकेत में बनाया गया हो .उस समय शायद किसी न किसी रूप में संकेतों के द्वारा व्यवस्थाओं को दर्शाया गया हो और उसे चक्रों का नाम दिया  गया हो.

उदाहरण के लिए हमारा तिरंगा-झंडा, राष्ट्रगान, संविधान ,महात्मा गांधी ,अंबेडकर, सुभाष चंद्र बोस और भगत सिंह के चित्र या फिर गजट नोटिफिकेशन या अशोक चिन्ह आदि के चिन्ह किसी जगह प्रदर्शित किये जा रहे हैं तो यह किसी न किसी रूप में भारत सरकार की छवि प्रस्तुत करने की कोशिश की जा रही है.ये चिन्ह तो प्रतीक मात्र हैं जिनके माध्यम से परोक्ष रूप से एक व्यवस्था की बात की जा रही है. अच्छा हो यदि हम अपनी शक्ति इन प्रतीकों से ऊपर उठ कर इनके पीछे की भावना और तथ्यों को समझाने या महसूस करने में लगाये.

योग अपनी ही उन व्यवस्थाओं को सुचारु और सरल बनाने का नाम है जो किसी ना किसी कारणवश या अज्ञानवश एक दूसरे के साथ मिलकर लड़ रही हैं और चल नहीं पा रही है.
यह ऐसे है जैसे कुछ लोग गांधी का चित्र तो कुछ संविधान के किताब और कुछ तिरंगा झंडा तो कुछ अशोक चक्र लेकर आपस में लड़ रहे हों. उनमें से हर कोई सिर्फ अपने को ही  देश का ठेकेदार समझ कर दूसरे को गलत समझ रहा हो.

इस तरह के लोगों को सही राह दिखाना और  प्रेमपूर्वक मिलजुलकर कर रहना सिखाना ही वास्तविक योग है.

No comments:

Post a Comment

My new eBook