नाडी शोधन


योग में अक्सर इड़ा , पिंगला और सुषुमना नाडी का उल्लेख होता है. कहा जाता है कि इड़ा नाडी बायीं ओर ,पिंगला दायीं और तथा सुषुमना नाडी इनके मध्य में होती है.
जिज्ञासु अक्सर इसे शरीर के नाडी तंत्र के बाएँ ,दायें मध्य भाग में स्तिथ नाड़ियों के रूप में पहचानने की कोशिश करते हैं जो सही नहीं है.
इड़ा ,पिंगला और सुषुमना नाडी वास्तव में शरीर के अंग होकर हमारे नाडीतंत्र या स्नायुतंत्र की तीन अवस्थाएं हैं . इस में हमेशा सूचनाओं  का  बहाव  रहता है जो द्वेत पर आधारित है . इसका अर्थ है कि पूरा नाडी तंत्र या तो एक तरफ बहता है या फिर दूसरी तरफ . यह रूकता नहीं है बल्कि इन दोनों विरोधी सी दिखने वाली अवस्थाओं के बीच भटकता रहता है जैसे घड़ी का पेंडुलम एक से दूसरे छोर पर भागता रहता है रूकता नहीं है. दोनों छोरों के बीच में एक मध्य रेखा होती है जो इस पेंडुलम की सबसे स्थाई अवस्था होती है पर इसकी रचना इस तरह की जाती है कि इसे इस अवस्था में ठहरने  ही नहीं दिया जाता.
यही हाल हमारे स्नायु तंत्र का है जो हमारे दिमाग को शरीर से जोड़ता है. कभी ये एक और जाता है तो कभी दूसरी और पर पेंडुलम की तरह बीच में नहीं रुक पाता. इन्ही दोनों अवस्थाओं को सांकेतिक और अपरोक्ष रूप से इड़ा और पिंगला का नाम दिया गया है और मध्य की अवस्था को सुषुमना मन जाता है.
इड़ा से पिंगला और पिंगला से इड़ा की यात्रा में सुषुमना को बीच में आना ही होता है पर जब तक हम इसका अहसास कर पाएं हम इसे पार कर चुके होते हैं.
योग में इड़ा और पिंगला के चक्र का अहसास दिलाने के लिए अनुलोम विलोम प्राणायाम का प्रावधान है जिसमें बारी बारी से हम दायें और बाएँ नथुने से सांस लेते हैं.
इसी का एक परिष्कृत रूप है नाडी शोधन प्राणायाम जिसमें दोनों और बारी बारी से साँस लेने के बीच में हम सांस को कुछ समय के लिए रोकते हैं और इस तरह सुषुमाना नाडी के अहसास को महसूस करते हैं.

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