रक्षा मंत्री के एक
फैसले ने कि ‘देशभर की सैनिक छावनियों के सभी मार्ग गैर सैनिक (सिविलियन) के लिए
खोल दिए जायें’ एक तूफ़ान सा ला दिया है | एक तरफ प्रभावशाली व्यक्ति और संस्थाएं इस फैसले के लिए
श्रेय लेने की होड़ में हैं और बहुत से सिविलियन इस बात को लेकर उत्साहित हैं कि
उन्हें सैनिकों के गुप्त और अनोखी दुनिया के दर्शन करने को मिलेगा, वहीं दूसरी ओर सैनिक
बिरादरी और एक बुद्धिजीवी वर्ग सैनिक ठिकानों की सुरक्षा को लेकर चिंतित है|
सैनिक छावनियों के
अन्दर से जाकर समय और धन की बचत की सुविधा के चलते अनेकों संस्थाएं इस लक्ष्य की
और वर्षों से संघर्ष कर रही थीं , पर जिस अप्रत्याशिक ढंग से यह फैसला लिया गया ,
अनायास ही दिल्ली के एक सनकी सुलतान मुहम्मद बिन तुगलक की यादें तजा हो जाती हैं| तुगलक ने अचानक अपनी राजधानी दिल्ली
से दौलताबाद ले जाने और सोने/चांदी की जगह पीतल/तांबे के सिक्के जारी करने का
फरमान जारी किया था| हालाँकि ये फैसले
सिद्धांततह: गलत नहीं थे पर जिस हड़बड़ी और बिना पूरी तयारी के इन्हें लागू किया गया
उससे इसका मजाक बन कर रह गया|
इसी तरह का नज़ारा हमें
नोटबंदी और GST को लागू करते वक्त देखने
को मिला था|
लगता है 800 साल बाद
भी दिल्ली के सुल्तानों का रवेय्या नहीं
बदला|
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