ब्लेकमेलर


नवल से मेरी मुलाकात एक अरसे बाद अचानक एयरपोर्ट लॉउन्ज पर हुई। मेरी फ्लाइट चार घंटे लेट थी और वह अपनी गाड़ी के आने का इंतज़ार कर रहा था। उससे मिल कर कालेज के दिन याद आ गए। कितना धमाल मचाते थे हम सब मिल कर। वह ज़िद करके मुझे अपने घर ले गया । मुंबई की एक पॉश कॉलोनी में आलीशान घर था उसका। उससे मिल कर पता लगा कि एक बड़ा बिल्डर बन चूका था वो।
फिर उसके घर आने जाने का सिलसिला शुरू हो गया और में उसके घर का सदस्य जैसा बन गया। एक दिन वह जब घर पर नहीं था और में उसके घर पर उसका इंतजार कर रहा था तो उसके ऑफिस के एक कर्मचारी को किसी को धमकाते हुए सुना। वह पैसे कि मांग कर रहा था जिसे संरक्षण धन यानि प्रोटेक्शन मनी की संज्ञा दे रहा था। मैं गलती से उस कमरे में आ गया था और उस व्यक्ति कि पीठ मेरी और होने की वजह से उसे मेरी उपस्थिति का आभास नहीं था। अब मेरी समझ में आने लगा था की नवल इतनी जल्दी इतना अमीर कैसे बन गया था।
मुझे याद आया कालेज के उन दिनों दिनों की घटनाएं जहाँ नवल अक्सर अपने साथ माचिस की एक डिब्बी में मरी हुयी मक्खी या कीड़ा रखता था और रेस्टोरेंट में खाना खाकर किसी भी प्लेट  में उस मरे हुए जीव को डाल कर इतना हंगामा खड़ा कर देता था कि रेस्टोरेंट के मालिक को बदनामी से बचने के लिए बिना बिल भरे ही जाने को मजबूर कर देता था। कई शहरों और कई  रेस्टोरेंट और मिठाई कि दुकान पर उसने यह रामबाण नुस्खा सफलता से चलाया था और उसके सब यार दोस्त इसमें मजा लेते थे। पर वो तो कालेज के दिन थे और ऐसी बातें कुछ अजीब नहीं लगाती थीं। पर नवल ने तो लगता है अपनी उसी कमीनी आदत को अपना धंधा बना डाला था।
नवल के माँ बाप का उसके बचपन में ही एक दुर्घटना में देहांत हो गया था और उसको  उसके एक शराबी  मामा ने निर्दय से प्रताड़ित करते हुए बड़ा किया था।
मैंने सोचा ,'काश उसको भी कालेज के दिनों में कोई रोकने टोकने वाला होता तो आज वह एक ब्लेकमेलर न होकर एक सभ्य नागरिक होता।'

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