काली दाल
‘खेल खतम पैसा हज़म’. ये कहावत हमने बचपन में सुनी थी, अब कोमन वेल्थ गेम्स के रूप में देख भी ली. सत्तर हज़ार करोड़ रुपये फूंक कर हमने बड़ी अच्छी दीवाली मना ली और देसी- विदेशियों को खुश भी कर दिया. मीडिया द्वारा भ्रष्टाचार के आरोप लगाने पर जो व्यक्ति एक दूसरे पर काम की जिम्मेदारी डाल रहे थे वही बढ चढ़ कर अब खुद इसके सफल होने का क्रेडिट लेते नहीं थकते.
भ्रष्टाचार का मुद्दा बड़ी चतुराई से जनता के हाथों से निकाल कर जाँच कमेटियों के हवाले कर दिया गया है जो हमेशा की तरह राजनैतिक और सरकारी व्यवस्था के आगे घुटने टेक कर घुट घुट कर दम तोड़ देगा .मोटी कमाई करने वाली बड़ी मछलियाँ हमेशा की तरह उस कमाई का कुछ हिस्सा चढ़ा कर किसी न किसी तरह बच निकालेंगे और हमेशा की तरह किसी छोटी मछली को ढूंढ कर उसे ‘बली का बकरा’ बना देंगी . बदइंतजामी और बेईमानी का ठीकरा तो किसी प्यादे के सर पर ही फूटेगा .
सत्तर हजार करोड़ रुपयों से कितने गांवों/ शहरों /लोगों की तकदीर बदल सकती थी ये बात अब ‘नक्कारखाने में तूती’ की आवाज़ की तरह दब जायेगी. आंकडो के मायाजाल में सच हमेशा की तरह कहीं छुप सा जायेगा.
निसंदेह अंततोगत्वा हमने विदेशी मेहमानों का कुछ दिनों के लिए दिल खुश कर दिया पर ‘घर फूंक कर दीवाली करने की जरूरत भला क्या थी ये कौन किसे समझायेगा? हजारों करोड़ रुपयों का खर्च ,प्रधान मंत्री का व्यक्तिगत हस्तक्षेप और भारतीय सेना के सराहनीय योगदान की बदोलत हम सफल तो हो गए पर इसमे जश्न मानाने जैसा क्या है ?
भ्रष्टाचार के नाम पर अब तक आम जनता इतना कुछ देख चुकी है कि अब कितनी ही बड़ी खबर से उसे सनसनी नहीं होती. फिर भी कुछ लोगों के दिमाग में कीडा होता है ये देखने और दिखाने का कि ‘दाल में क्या काला है’ इन बेचारों को शायद यह अहसास नहीं कि यहाँ तो पूरी दाल ही काली है. अब पूरी दाल को तो ये जानने के बाद भी फेंक नहीं सकते कि वह काली है ,नहीं तो खायेंगे क्या?
और फिर गोरी दाल कहीं से मिल भी जाय तो हमारे पाचन तंत्र को शायद रास न आये. किसी ने ठीक ही कहा है-‘ गली गली में बेईमान , फिर भी मेरा भारत महान’.
ई ऍम आइ का मकडजाल
उधारपति जी मेरे सहपाठी रह चुके हैं. मेधावी और कर्मठ रहे हैं. जब हमारी मित्र मंडली के अधिकांश लोग पढ़ाई पूरी करके इधर उधर नौकरी के लिए खाक छान रहे थे, उन्होंने वकालत में अपनी धाक जमा कर अच्छी कमाई भी शुरू कर ली थी. कई सालों बाद आज अचानक उनसे भेंट हुई. उनकी (आर्थिक) हालत देख कर आश्चर्य हुआ. कई ई ऍम आइ के बोझ तले उन्हें दबे देख ‘पीपली लाइव’ का वो गाना याद आ गया , ‘सखी सैयां तों खूब कमात हैं , महंगाई डायन खाए जात है ...’
उधारपति जी अकेले ही उधारी मैं जिंदगी काट कर अपना नाम सार्थक नही कर रहे, उन जैसे लोग मिलना आजकल आम हो गया है. उदारीकरण, प्लास्टिक मनी और इ- बैंकिंग ने जहाँ एक ओर हमारी जिन्दगी को सरल बनाया है वहीं उधार के दलदल में भी धकेल दिया है.
उधार के दम पर अपनी इच्छा पूरी करते वक्त छोटी सी इंस्टालमेंट को मेनेज करना आसान लगता है पर लंबे समय तक इन छोटी छोटी इंस्टालमेंट को झेल पाने का बूता अच्छे अच्छों में नहीं दिखता. उधार की मार से बचने के लिए दूसरा उधार लेकर हम इस मकड जाल में फंसते ही जाते है.
मैंने कहीं एक प्रयोग के बारे में पढ़ा था जिसमे किसी ने जब एक मेंढक को उबलते पानी में डाला तों वह एकदम उछल कर जान बचाने के लिए बाहर कूद पड़ा. पर जब उसी मेंढक को जब पानी की कढाई में डाल कर धीरे – धीरे पानी गर्म किया गया तों उसने बाहर निकालने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई और अपनी मौत की तरफ आराम से सरकता गया और अंत में उबलकर मर गया. शायद मरने से पहले उसने बड़े हाथ पैर पटके होंगे बाहर निकालने के लिए ,पर तब तक वह इतना कमजोर हो चुका था कि बाहर तक छलांग मरने की जान ही उसमें नहीं बची थी.
उधार देने वाली संस्थाये इसी गुरु मन्त्र का इस्तेमाल करके आम आदमी को खून चूस डालते हैं और उसे पता भी नहीं चलता. सदियों से सूदखोर महाजन गांवों और कस्बे में गरीबों को ठग रहे थे पर अब ये बीमारी शहरों तक जा पहुँची है और पढ़े लिखे और संपन्न लोगोंको भी नहीं बक्श्ती. अब तो इसमें सब कुछ आधुनिक कम्पूटर और इंटरनेट के माध्यम से होता है.
पर इसमें जितना हाथ उधार देने वाली संस्थाओं का है उतना ही दोष उन लोगों का है जो लालच,अज्ञान और भावावेश में आकर अपनी क्षमता से कहीं अधिक का उधार उठाने का प्रयास करते हैं और फिर फिसलते ही जाते हैं.
मैं तीन तरह के लोगों का जिक्र करना चाहूँगा जिनमे से किसी न किसी (एक) वर्ग में आप जरूर होंगे-
१. आप पर अभी कोई उधार नहीं है – यकीन मानिये ,आप चंद गिने चुने भाग्यशाली लोगों में है जो आज के दौर में मुश्किल से मिलते है. अगर कोई विशेष दबाब या मजबूरी न हो तो अपने इस वी आई पी स्टेटस को हाथ से न जाने दें. अगर किसी मजबूरी के चलते उधार लेना ही पड़े तो इससे जुड़े हर पक्ष ,हर पहलू की जाँच कर ले. आपकी जानकारी के दायरे में जो लोग उस तरह का उधार ले चुके हैं उनसे आत्मीयता से खुल कर बातें करे और मन में उठ रहे हर सवाल का हल जानने की कोशिश करें चाहे इसके लिए आपको किसी प्रोफेशनल की सेवाएं क्यो ना लेनी पड़े या कुछ खर्चा ही क्यो ना करना पड़े. उधार की रकम उतनी ही रखें जितनी आपकी वास्तविक जरूरत है और जितना आप आसानी से वापस कर सकते हैं (अपनी अन्य जरूरत पूरी करने के बाद). इस बात को अधिक महत्त्व न दें कि आपको उधार कितना मिल सकता है.
२. आप पर उधार है पर आप आसानी से उसे चुका रहे हैं – आप भी भाग्यशाली है कि उधार को चुकाने में आपको परेशानी का सामना नहीं करना पडता. पर अगर उधार लंबे समय के लिए है तो कम से कम आपके पास ३ से ६ महीने तक की ई ऍम आइ चुकाने और बिना आमदनी के घर चलाने के पैसे इमरजेंसी के लिए अलग रखे होने चाहिए और इन्हें किसी भी और कारण के लिए नहीं इस्तेमाल करना चाहिए. अनिश्चितताओ के इस दौर में न तो कोई नोकरी स्थाई रही है और न ही कोई ऐसा व्यापार जहाँ हमेशा निश्चित आमदनी की गारंटी हो. किसी नए उधार को जहाँ तक संभव हो टालने की कोशिश करें. अगर संभव हो तो किसी ऐसी बचत योजना में सिलसिलेवार निवेश पर विचार करे जिससे आपको आयकर में भी राहत मिले. रकम चाहे छोटी ही क्यों न हो पर जैसे इंस्टालमेंट में हम आसानी से उधार चुका सकते हैं वैसे ही छोटी छोटी इंस्टालमेंट जोडकर एक बड़ी रकम बचा भी सकते हैं बस जरा सा धीरज और हिम्मत चाहिए पहल करने की.
३. आप पर काफी उधार है और उसी को चुकाने के चक्कर में जिंदगी बेमजा हो गयी है –आप सही मायने में एक आम आदमी हैं. हममे से अधिकतर लोग एसी वर्ग में आते हैं. अभिमन्यु की तरह आप उधार के इस चक्रव्यूह में घुस तो गए हैं और जैसे तैसे टिके भी हुए हैं, पर बाहर निकालने का कोई रास्ता आपको नज़र नहीं आ रहा. पर हिम्मत न हारे , आप २१ वीं सदी में है, महाभारत युग में नहीं. आज का अभिमन्यू अर्जुन से वीडियो चेटिंग करके रास्ता पूंछ सकता है और जरूरत होने पर खुद अर्जुन को चार्टर्ड प्लेन से बुलाया जा भी सकता है. सही जानकारी हासिल करना अब इतना मुश्किल नहीं.
सबसे पहले अपनी स्थिति का सही आकलन करें. अगर आंकडे और गणित आपको परेशान करते हों तो किसी ऐसे मित्र या सहयोगी को ढूंढ कर साथ बैठे जो इन सब में आपका मददगार साबित हो सके. इन सवालों के जबाब लिख कर रखें-
आप पर कुल कितना उधार है ? इसमे कितना ब्याज है और कितना मूलधन ?
उसकी ई ऍम आइ कितनी बनाती है ?
आपको घर चलाने के लिए कितना पैसा चाहिए? क्या इसमें कोई कमी की गुंजाईश है ?
क्या आप अपनी आमदनी को बढ़ाने के किसी विकल्प पर काम कर सकते है ?
अगर आप अपनी मौजूदा आमदनी में से घर खर्च और ई ऍम आइ दोनों का बोझ नहीं उठा सकते तो इन विकल्पों पर भी विचार करें-
क्या आपके पास कोई ऐसी चीज़ है जिसे गिरवी रख कर या बेच कर कुछ रकम जुटाई जा सकती है? आजकल शेयर,सोना,गहने,जमीन,गाड़ी वगेहरा को बेचना या गिरवी रखना इतना आसान हो गया है कि कोई भी इसे आसानी से कर सकता है .दलालो के चक्कर में पडने कि बजाय किसी प्रतिष्टित संसथान की मदद लें और सौदे से पहले सारी बातें साफ़ साफ़ कर लें.
क्या आप किसी मित्र या संबंधी से बिना अपने रिश्तों में कडवाहट लाए कुछ रकम निश्चित अवधि के लिए मांग सकते हैं? इस तरह आपका ब्याज का बोझ कुछ हल्का हो जायेगा पर इसको भी बैंक लोन की तरह ही चुकाने का प्रयास करे चाहे यह वापस मांगने का तकाजा हो या न हो.
उधार चुकाने के लिए उधार लेना कोई स्वस्थ रास्ता नहीं है पर अगर और कोई विकल्प नज़र न आये तो इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए और इस लोन का फार्म भरने से पहले से पहले ध्यान से पढ़ ले और ‘शर्ते लागू है’ जैसे गोल मोल बातों का स्पष्टीकरण लेकर अपनी तसल्ली कर ले. आजकल लोन बड़ी आसानी से मिल जाते है पर उनको चुकाने का अनुभव बड़ा चुनोतीपूर्ण और झंझट भरा होता है.
उधार की दलदल में अगर आप फंस ही गए हैं तो हाथ पैर तो मारने ही पड़ेगे पर घबराकर मारे गए हाथ पैर जहाँ आपको और अंदर घसीटेंगे वहीं सोच समझ कर किया गया प्रयास आपको किनारे ला सकता है. ऐसे में अगर कोई बाहरी सहायता मिल जाय तो क्या कहने.
चित्र साभार
http://www.bigfoto.com/
उधारपति जी अकेले ही उधारी मैं जिंदगी काट कर अपना नाम सार्थक नही कर रहे, उन जैसे लोग मिलना आजकल आम हो गया है. उदारीकरण, प्लास्टिक मनी और इ- बैंकिंग ने जहाँ एक ओर हमारी जिन्दगी को सरल बनाया है वहीं उधार के दलदल में भी धकेल दिया है.
उधार के दम पर अपनी इच्छा पूरी करते वक्त छोटी सी इंस्टालमेंट को मेनेज करना आसान लगता है पर लंबे समय तक इन छोटी छोटी इंस्टालमेंट को झेल पाने का बूता अच्छे अच्छों में नहीं दिखता. उधार की मार से बचने के लिए दूसरा उधार लेकर हम इस मकड जाल में फंसते ही जाते है.
मैंने कहीं एक प्रयोग के बारे में पढ़ा था जिसमे किसी ने जब एक मेंढक को उबलते पानी में डाला तों वह एकदम उछल कर जान बचाने के लिए बाहर कूद पड़ा. पर जब उसी मेंढक को जब पानी की कढाई में डाल कर धीरे – धीरे पानी गर्म किया गया तों उसने बाहर निकालने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई और अपनी मौत की तरफ आराम से सरकता गया और अंत में उबलकर मर गया. शायद मरने से पहले उसने बड़े हाथ पैर पटके होंगे बाहर निकालने के लिए ,पर तब तक वह इतना कमजोर हो चुका था कि बाहर तक छलांग मरने की जान ही उसमें नहीं बची थी.
उधार देने वाली संस्थाये इसी गुरु मन्त्र का इस्तेमाल करके आम आदमी को खून चूस डालते हैं और उसे पता भी नहीं चलता. सदियों से सूदखोर महाजन गांवों और कस्बे में गरीबों को ठग रहे थे पर अब ये बीमारी शहरों तक जा पहुँची है और पढ़े लिखे और संपन्न लोगोंको भी नहीं बक्श्ती. अब तो इसमें सब कुछ आधुनिक कम्पूटर और इंटरनेट के माध्यम से होता है.
पर इसमें जितना हाथ उधार देने वाली संस्थाओं का है उतना ही दोष उन लोगों का है जो लालच,अज्ञान और भावावेश में आकर अपनी क्षमता से कहीं अधिक का उधार उठाने का प्रयास करते हैं और फिर फिसलते ही जाते हैं.
मैं तीन तरह के लोगों का जिक्र करना चाहूँगा जिनमे से किसी न किसी (एक) वर्ग में आप जरूर होंगे-
१. आप पर अभी कोई उधार नहीं है – यकीन मानिये ,आप चंद गिने चुने भाग्यशाली लोगों में है जो आज के दौर में मुश्किल से मिलते है. अगर कोई विशेष दबाब या मजबूरी न हो तो अपने इस वी आई पी स्टेटस को हाथ से न जाने दें. अगर किसी मजबूरी के चलते उधार लेना ही पड़े तो इससे जुड़े हर पक्ष ,हर पहलू की जाँच कर ले. आपकी जानकारी के दायरे में जो लोग उस तरह का उधार ले चुके हैं उनसे आत्मीयता से खुल कर बातें करे और मन में उठ रहे हर सवाल का हल जानने की कोशिश करें चाहे इसके लिए आपको किसी प्रोफेशनल की सेवाएं क्यो ना लेनी पड़े या कुछ खर्चा ही क्यो ना करना पड़े. उधार की रकम उतनी ही रखें जितनी आपकी वास्तविक जरूरत है और जितना आप आसानी से वापस कर सकते हैं (अपनी अन्य जरूरत पूरी करने के बाद). इस बात को अधिक महत्त्व न दें कि आपको उधार कितना मिल सकता है.
२. आप पर उधार है पर आप आसानी से उसे चुका रहे हैं – आप भी भाग्यशाली है कि उधार को चुकाने में आपको परेशानी का सामना नहीं करना पडता. पर अगर उधार लंबे समय के लिए है तो कम से कम आपके पास ३ से ६ महीने तक की ई ऍम आइ चुकाने और बिना आमदनी के घर चलाने के पैसे इमरजेंसी के लिए अलग रखे होने चाहिए और इन्हें किसी भी और कारण के लिए नहीं इस्तेमाल करना चाहिए. अनिश्चितताओ के इस दौर में न तो कोई नोकरी स्थाई रही है और न ही कोई ऐसा व्यापार जहाँ हमेशा निश्चित आमदनी की गारंटी हो. किसी नए उधार को जहाँ तक संभव हो टालने की कोशिश करें. अगर संभव हो तो किसी ऐसी बचत योजना में सिलसिलेवार निवेश पर विचार करे जिससे आपको आयकर में भी राहत मिले. रकम चाहे छोटी ही क्यों न हो पर जैसे इंस्टालमेंट में हम आसानी से उधार चुका सकते हैं वैसे ही छोटी छोटी इंस्टालमेंट जोडकर एक बड़ी रकम बचा भी सकते हैं बस जरा सा धीरज और हिम्मत चाहिए पहल करने की.
३. आप पर काफी उधार है और उसी को चुकाने के चक्कर में जिंदगी बेमजा हो गयी है –आप सही मायने में एक आम आदमी हैं. हममे से अधिकतर लोग एसी वर्ग में आते हैं. अभिमन्यु की तरह आप उधार के इस चक्रव्यूह में घुस तो गए हैं और जैसे तैसे टिके भी हुए हैं, पर बाहर निकालने का कोई रास्ता आपको नज़र नहीं आ रहा. पर हिम्मत न हारे , आप २१ वीं सदी में है, महाभारत युग में नहीं. आज का अभिमन्यू अर्जुन से वीडियो चेटिंग करके रास्ता पूंछ सकता है और जरूरत होने पर खुद अर्जुन को चार्टर्ड प्लेन से बुलाया जा भी सकता है. सही जानकारी हासिल करना अब इतना मुश्किल नहीं.
सबसे पहले अपनी स्थिति का सही आकलन करें. अगर आंकडे और गणित आपको परेशान करते हों तो किसी ऐसे मित्र या सहयोगी को ढूंढ कर साथ बैठे जो इन सब में आपका मददगार साबित हो सके. इन सवालों के जबाब लिख कर रखें-
आप पर कुल कितना उधार है ? इसमे कितना ब्याज है और कितना मूलधन ?
उसकी ई ऍम आइ कितनी बनाती है ?
आपको घर चलाने के लिए कितना पैसा चाहिए? क्या इसमें कोई कमी की गुंजाईश है ?
क्या आप अपनी आमदनी को बढ़ाने के किसी विकल्प पर काम कर सकते है ?
अगर आप अपनी मौजूदा आमदनी में से घर खर्च और ई ऍम आइ दोनों का बोझ नहीं उठा सकते तो इन विकल्पों पर भी विचार करें-
क्या आपके पास कोई ऐसी चीज़ है जिसे गिरवी रख कर या बेच कर कुछ रकम जुटाई जा सकती है? आजकल शेयर,सोना,गहने,जमीन,गाड़ी वगेहरा को बेचना या गिरवी रखना इतना आसान हो गया है कि कोई भी इसे आसानी से कर सकता है .दलालो के चक्कर में पडने कि बजाय किसी प्रतिष्टित संसथान की मदद लें और सौदे से पहले सारी बातें साफ़ साफ़ कर लें.
क्या आप किसी मित्र या संबंधी से बिना अपने रिश्तों में कडवाहट लाए कुछ रकम निश्चित अवधि के लिए मांग सकते हैं? इस तरह आपका ब्याज का बोझ कुछ हल्का हो जायेगा पर इसको भी बैंक लोन की तरह ही चुकाने का प्रयास करे चाहे यह वापस मांगने का तकाजा हो या न हो.
उधार चुकाने के लिए उधार लेना कोई स्वस्थ रास्ता नहीं है पर अगर और कोई विकल्प नज़र न आये तो इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए और इस लोन का फार्म भरने से पहले से पहले ध्यान से पढ़ ले और ‘शर्ते लागू है’ जैसे गोल मोल बातों का स्पष्टीकरण लेकर अपनी तसल्ली कर ले. आजकल लोन बड़ी आसानी से मिल जाते है पर उनको चुकाने का अनुभव बड़ा चुनोतीपूर्ण और झंझट भरा होता है.
उधार की दलदल में अगर आप फंस ही गए हैं तो हाथ पैर तो मारने ही पड़ेगे पर घबराकर मारे गए हाथ पैर जहाँ आपको और अंदर घसीटेंगे वहीं सोच समझ कर किया गया प्रयास आपको किनारे ला सकता है. ऐसे में अगर कोई बाहरी सहायता मिल जाय तो क्या कहने.
चित्र साभार
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मशीनी दुनिया के बौने लोग
मेरे एक मित्र के पास बिजली विभाग से नोटिस आया कि वो बिजली के बकाया बिल का भुगतान करें अन्यथा उनका कन्नेक्शन काट दिया जायेगा. मजेदार बात ये थी कि बकाया रकम के आगे संख्या दिखाई गयी थी वो थी 'शून्य' . ये एक कम्पूटर जनित पत्र था जिसमे भेजने वाले के हस्ताक्षर नहीं थे वर्ना उस महानुभाव को पकड़ा भी जा सकता था जिसने ऐसा हास्यास्पद नोटिस बनाया था.
कमपूटर जी जिन्होंने ये नोटिस बनाया था उनको ढूँढने के चक्कर में मित्र महोदय को न जाने किस किस के आफिस में चक्कर लगाने पड़े . 'आफिस-आफिस' टी वी सीरियल की तरह वे जहाँ भी गए सबने किसी न किसी और से मिलने की सलाह दी पर उनकी समस्या जस की तस बनी रही और नोटिस आना जारी रहे.
किसी सयाने ने उन्हें एक उपाय बताया जिससे उनकी समस्या बड़ी आसानी से दूर हो गयी. उन्होंने एक चैक बिजली विभाग के नाम बनाया और उस पर जो रकम लिखी वो थी 'शून्य रुपये मात्र'. इस चैक को जमा करते ही न सिर्फ उनके यहाँ नोटिस आना बंद हो गए वरन कम्पूटर जी का एक पत्र भी आया जिसमे लिखा था 'बिजली का बिल चुकाने के लिए धन्यवाद'.
आज की इस मशीनी दुनिया में अधिकतर फैसले कम्पूटर में दर्ज डाटा के आधार पर उस सोफ्टवेयर के लोजिक से होते हैं जिसकी समझ उसे बनानेवाले की उस वक्त की जानकारी और बुद्धि पर होती है.
नादान कम्पूटर तो मशीन मात्र है. उसमे न तो इंसानी समझ की शक्ति है और न ही नयी समस्याओं और हालातों के आने पर उनसे जूझने का जज्बा. ये सिर्फ 'विश्वास ' और 'आशा' के भरोसे ही बड़ी बड़ी योजनाओं को अंजाम देने का इंसानी माद्दा भी नहीं रखता.
पर इस मशीनी चकाचोंध में हम इंसान अपना ही कद छोटा कर डालेंगे?
चित्र साभार Free-StockPhotos.com
बाल की खाल
ये बाल भी बड़ी विचित्र चीज़ है.
एक तो जगह के साथ इसका नाम बदल जाता है – सर पर बाल, माथे पर भों ,होठों पर मूंछ, गलों पर दाढी और ...........
दूसरे, ये कोई मृत पदार्थ नहीं है, शरीर का एक जीवित हिस्सा है पर आप इन पर बेरहमी से कैंची चला सकते हैं ,और आपको बिलकुल भी दर्द नहीं होगा. बल्कि हजारों लोगों की तो रोजी – रोटी ही इसी धंधे से चलती है.
तीसरे शरीर के बाकी हिस्सों की बढ़त तो वयस्क होने पर रुक सी जाती है पर बाल कितने भी ब्रद्ध होने पर भी लगातार बेलगाम बढ़ते रहते है.
इन विचित्रताओं के कारण ही शायरों ने इन पर हजारों शेर और गाने लिख डाले है और हसीनाएं (कुछ हसीन भी) इस पर अपना ढेर सा वक्त खर्च कर डालती है. फिल्मों में तो हेयर स्टाइलिश आदमी का रूप ही बदल देते है.
बाल अगर झडने लगे तो हमें इनकी कमी का असली अहसास होता है. जब हम इनको पूरी तरह से खो देते हैं तो अक्कासर दूसरों के मजाक का पात्र बन बैठते हैं. अकसर दुख: के समय (जैसे किसी बड़े बूडे की मौत) इन्हें शरीर से विदा करने की परंपरा देखी जा सकती है.
बाल बड़ी बेशर्मी से शरीर के किसी भी अंग पर उगने की ताकत रखते हैं पर कुछ लोगों से इनकी ये बढ़त देखी नहीं जाती और वो उन्हें जब मौका लगे उड़ाने की फ़िराक में रहते है. बहुत सी कम्पनी तो बाल उड़ाने के यंत्र और दवाईयाँ बना कर ही करोडो रुपये कमा रही हैं.
कई समझदार लोग इनकी देखभाल में कोई कसर नहीं छोडते और फिर अच्छे बालों के कारण ही अपनी पहचान बनाते हैं. सिख जाति में बाल कटना वर्जित है तो उसका इनाम उन्हें ये मिलता है कि उन्हें हेलमेट खरीदने पर पैसे खर्च नहीं करने पड़ते.
हमें सर पर तो बालों को ताज बना कर बिठाना मंज़ूर है पर गालों से इनकी नज़दीकियाँ नागवार गुज़रती है इसलिए शेविंग को अकसर लोगो ने अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना डाला है है और चिकने गालों (सुंदरियाँ 'गालों' की जगह 'टाँगें' पढ़े ) को सुंदरता का पैमाना.
बाल की खाल निकालने वालों की इस दुनिया में पहले ही से कमी नहीं और आज एक और (मैं भी) शामिल हो चला है.
चित्र साभार http://www.freedigitalphotos.net/
बैक सीट ड्राइविंग
मेरी पत्नी को ड्राइविंग नहीं आती, न ही उनकी उसको सीखने में कोई दिलचस्पी है. पर कार की पिछली सीट (कभी कभी अगली को–ड्राइवर सीट, जब कार में हम दोनों ही होते हैं) पर बैठ कर कार चलाने का जो उनका जज्बा है वो कबीले तारीफ है. लगता है भगवान ने उन्हें कोई अद्रश्य रिमोट कंट्रोलर दिया है जिससे कार का सञ्चालन आसान हो जाता है.
जब मैं कार चला रहा होता हूँ और श्रीमतीजी भी साथ हों तो न तो मैं एफ ऍम रेडियो का लुत्फ़ ले पता हूँ और न ही ट्रेफिक का शोर मुझे सुनायी पडता है. इसका कारण यह है कि मुझे अपने कानो का एंटीना एक लगातार चलने वाली आवाज की धारा पर फोकस करना होता है जो देवी जी के मुंह से निकल रही होते है. इस धारा में आदेश ,आलोचना, हिदायत, टिप्पणी और बात चीत सभी के अंश बड़ी खूबसूरती से पिरोये होते हैं .ये किसी टीवी चेनल के मनोरंजक सीरियल से कम नहीं होता मगर मेरी मजबूरी इतनी है कि इस सीरियल को मैं अपनी मर्जी से बदल नहीं सकता और ना ही इसे बंद कर सकता हूँ (मुझमें इतनी हिम्मत कहाँ?). मुझे ये प्रोग्राम न सिर्फ झेलना पडता है बल्कि खेलना भी पडता है और बीच बीच में पूंछे हर सवाल पर मुझे उम्मीद के मुताबिक जबाब भी देना होता. मै तो लगता है कि KBC (कौन बनेगा करोडपति) की हॉट सीट पर बैठा निरीह कंटेस्टेंट हूँ .
हमारे देश में खुली सड़क पर कर चलाना किसी अभियान से कम नहीं होता. कितनी ही समस्याओं से हमें जूझना पढ़ सकता है. रोड में गढ्ढे होना ,ट्राफिक साइन का न होना और होने पर भी अधिकतर वाहन चालकों का उनकी परवाह न करना ,घंटो जाम लगा रहना आदि तो तो मामूली समस्याए हैं ही, कभी कभी इनमें से कुछ समस्याए इतनी घातक और विकराल रूप धारण कर लेती है कि जान पर बन आती है जैसे हाई वे पर तेज स्पीड कार के सामने अचानक किसी प्राणी (मनुष्य या भेंस, कुत्ता,बकरी आदि) का प्रकट हो जाना, नशे की झोंक मे गाड़ी हांकते किसी वहन चालक से सामना हो जाना, मैन होल या नाले का मुंह का खुला होना आदि .
ऐसी किसी समस्या के अचानक आ जाने पर मुझे अपने ध्यान और दिमाग को उस पर केंद्रित करने की जरूरत होती है. पर शीमती जी ऐसे मोके पर मुझसे मेरा ये हक भी छीन लेती है और ऐसी भयानक चीख पुकार करती हैं कि उनके इस होरर शो पर मेरा ध्यान अपने आप ही चला जाता है और सामने आयी समस्या से कुछ हट जाता है . और अगर ऐसे में कुछ गलती हो जाय तो मेरी आलोचनाओ का पिटारा वही खुल जाता है जो आगे के सफर को और दूभर कर देता है.
श्रीमती जी के मुताबिक मै एक अच्छा ड्राइवर नहीं हूँ.
क्या आपकी अर्धांगिनी भी ऐसा ही सोचती हैं? या अगर आप महिला हैं तो आप भी अपने पति के साथ ऐसा ही सलूक करती है? या अगर आप विवाहित नहीं हैं तो क्या अपने कहीं ऐसा नजारा देखा है?
ऐसी समस्या विवाहित जोड़ो के साथ हो ऐसा नहीं है. ये तो किसी भी जोड़े के साथ हो सकती है चाहे वो बिज़निस पार्टनर हों या दोस्त .
पता नहीं मुझे अपने इस कष्ट से कब मुक्ति मिलेगी ?
जब देश का प्रधान मंत्री के पद पर बैठा व्यक्ति इस यातना को झेल सकता है तो मै तो एक अदना सा आदमी हूँ!
कुछ तो लोग कहेंगे ....
बचपन में एक कथा सुनी थी शिव, पार्वती और उनके वाहन नंदी बैल के बारे में.
कथा यूँ है की एक बार ये तीनो धरती पर मानव रूप में हालात का जायजा लेने के लिए आए.
एक गांव से तीनो जा रहे थे तो कुछ लोगों ने उन्हें देख कर कहना शुरू कर दिया ,’देखो कैसे लोग है,साथ में वाहन (यानी नंदी बैल) है पर फिर भी पैदल चल रहे है.’. उनकी बातें सुनकर दोनों लोग (शिव-पार्वती) नंदी पर सवार हो गए. कुछ ही दूर चले होंगे की उन्हें फिर लोगों के बोल सुने पड़े, ‘अरे कैसे जालिम लोग है, बूढ़े बैल पर दो- दो लोग सवार है, बेचारे को मार ही डालेंगे. चलो औरत सवारी करे तो ठीक, मर्द को बैल पर बैठने की क्या जरूरत.’
इस पर शिवजी ने सोचा –शायद इनकी बात में दम है और वो बैल से उतर कर पैदल चलने लगे. थोड़ी देर में फिर उन्हें लोगों के कमेन्ट मिलाना शुरू हो गए (लोग और कुछ दे न सके पर कमेन्ट जरूर मुफ्त में देकर आनंदित होते है वो भी खूब सारे).’ देखो कितनी बेशर्म औरत है, बूढा पति पैदल चल रहा है और खुद बैल पर बैठी है.क्या जमाना आ गया है !’ ये साब सुनकर पार्वती उतर गयी और जिद करके शिव को बैल पर बैठा दिया. अब कमेन्ट सुनाने की बारी शिव की थी,’कैसा मर्द है, नाजुक औरत को पैदल चला रहा है और खुद सवारी कर रहा है. घोर कलयुग आ गया है .’ भोले शिव को क्रोध आ गया और उन्होंने नंदी बैल को अपने कंधे पर उठा लिया. पर लोगो को चैन कहाँ! बोलने लगे,’ कैसा पागल इंसान है,बैल की सवारी करने की बजाय उसकी सवारी बन रहा है.’
कहानी का सार ये कि आपको अपने फैसले लोगों की बातों में ही आकर नहीं कर देने चाहिए. आप सबको किसी भी हाल में खुश नहीं कर सकते.
लोग अगर आपकी आलोचना कर रहे है तो आपका प्रयास उन्हें खुश करने का नहीं होना चाहिए, जिससे वे आलोचना करना बंद कर दें. इन लोगों को धन्यवाद करके इसको एक मौके कि तरह देखना चाहिए और हमारा प्रयास अपने फैसले को एकबार फिर जांचने का होना चाहिए. फैसला अगर खरा होगा तो हर बार जांचने पर सही ही दिखाई देगा. अपना फैसला लेने वाले आप ही अंतिम व्यक्ति होने चाहिए .अपनी यह ताकत दूसरों के हाथो में दे देना तो मूर्खता होगी. अपने बारे में सबसे सही जानकारी तो आपको होनी चाहिए और अपने फैसलों को निभाना भी तो आपको ही है.
लोगों का क्या है. उन्हे आपकी जरूरतों और मजबूरियों का क्या गुमान ! वो तो कुछ भी कह गुजरेंगे. किसी शायर ने क्या खूब कहा है, ‘कुछ तो लोग कहेंगे, लोगो का काम है कहना..’
कुछ तो गुंजाइश रखें
एक बार मुझे अपने एक मित्र के साथ रेल से कहीं जाना जाना था. हमेशा की तरह मैं रेल छूटने के समय से करीब आधा घंटा पहले स्टेशन पहुँच गया. इस बार इस कार्यवाही को अंजाम देने में मुझे काफी मशक्कत करनी पडी क्योंकि मित्र महाशय बड़े आरामखोर थे . मुझे उन्हें झिझोडकर जगाना पड़ा, नाश्ता उनके मुंह में ठूसना पड़ा और लगभग खींच कर उन्हें घर से बाहर तक लाना पड़ा.
स्टेशन पहुँच कर मित्र महोदय बोले,' यार, क्यों इतनी जल्दी मचा रखी थी? अभी आधा घंटा बचा है.में तो हर बार ठीक समय पर ही स्टेशन पहुंचता हूँ. इतना समय स्टेशन पर क्यूँ बर्बाद करना.'
मैंने जबाब दिया, 'भाई ,अगर रास्ते मै कुछ परेशानी आ जाती तो? कुछ तो गुंजाइश रखनी थी.'
मित्र ने मुस्कुराते हुए सवाल किया, आज तक जिन्दगी में रेल पकड़ते वक्त कितनी बार तुम्हारे रास्ते में कोई परेशानी आई ?
मैंने सोच कर जबाब दिया, ४ या ५ बार.'
उसने फिर पूंछा ,आज तक कुल कितनी बार रेल में यात्रा की होगी तुमने?'
मैंने मन ही मन हिसाब लगाया - पिछले ३० सालों से हर साल ५० बार तो यात्रा हो ही जाती होगी .
'१५०० बार', मैंने कहा.
इस पर मित्र महाशय बोले,' तुमने ७५० घंटे (१५०० बार के लिए हर बार आधा घंटे के सिसाब से) का समय जो करीब एक महीने से भी ज्यादा होता है उसे बर्बाद कर डाला महज ४/५ बार की परेशानी से बचने के लिए. ये बेबकूफी नहीं है क्या?
उस वक्त तो में उन्हें कोई उत्तर न दे सका पर बाद में मैंने इस गणित पर विचार किया.
किसी भी प्रोजक्ट की योजना बनाते समय और उसे अंजाम देते समय भी इंजीनियरिंग की गणनओं के बाद भी कुछ तो गुंजाइश रखी ही जाती है.
पर सवाल यह है कि ये गुंजाइश कितनी हो?
मेरा अपना मानना है कि यह इस बात पर निर्भर करता है कि उस घटना के न होने की दशा में नुकसान कितना है.
अगर इससे होने वाला नुकसान मेरे लिए मायने रखता है तो निश्चित ही मैं गुंजाइश की मात्रा अधिक रखूँगा चाहे इसके लिए मुझे किसी परेशानी का सामना क्यों न करना पड़े.
गणित जरूरी है पर जीवन को गणित मै बंधा नहीं जा सकता.
मेरे कहने का यह मतलब हरगिज यह नहीं है कि मेरा मित्र गलत था. बस उसके गुंजायश रखने की मात्रा मेरे से बहुत कम थी.जहाँ में ३० मिनट का गुंजायश रखने का आदी हूँ वहां उसके लिए एक या दो मिनट बहुत थे. इसका कारण था उसका मुझसे कहीं अमीर होना. मैं जानता था कि अगर उसकी रेल छुट भी गयी तो उसे बहुत कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला. वो टेक्सी या हवाई जहाज में बैठ कर समय से पहुँच ही जायेगा.
पर मैं गरीब इतना खर्चा नहीं उठा सकता.
इसी लिए तो इतनी गुंजायश रखता हूँ.
स्टेशन पहुँच कर मित्र महोदय बोले,' यार, क्यों इतनी जल्दी मचा रखी थी? अभी आधा घंटा बचा है.में तो हर बार ठीक समय पर ही स्टेशन पहुंचता हूँ. इतना समय स्टेशन पर क्यूँ बर्बाद करना.'
मैंने जबाब दिया, 'भाई ,अगर रास्ते मै कुछ परेशानी आ जाती तो? कुछ तो गुंजाइश रखनी थी.'
मित्र ने मुस्कुराते हुए सवाल किया, आज तक जिन्दगी में रेल पकड़ते वक्त कितनी बार तुम्हारे रास्ते में कोई परेशानी आई ?
मैंने सोच कर जबाब दिया, ४ या ५ बार.'
उसने फिर पूंछा ,आज तक कुल कितनी बार रेल में यात्रा की होगी तुमने?'
मैंने मन ही मन हिसाब लगाया - पिछले ३० सालों से हर साल ५० बार तो यात्रा हो ही जाती होगी .
'१५०० बार', मैंने कहा.
इस पर मित्र महाशय बोले,' तुमने ७५० घंटे (१५०० बार के लिए हर बार आधा घंटे के सिसाब से) का समय जो करीब एक महीने से भी ज्यादा होता है उसे बर्बाद कर डाला महज ४/५ बार की परेशानी से बचने के लिए. ये बेबकूफी नहीं है क्या?
उस वक्त तो में उन्हें कोई उत्तर न दे सका पर बाद में मैंने इस गणित पर विचार किया.
किसी भी प्रोजक्ट की योजना बनाते समय और उसे अंजाम देते समय भी इंजीनियरिंग की गणनओं के बाद भी कुछ तो गुंजाइश रखी ही जाती है.
पर सवाल यह है कि ये गुंजाइश कितनी हो?
मेरा अपना मानना है कि यह इस बात पर निर्भर करता है कि उस घटना के न होने की दशा में नुकसान कितना है.
अगर इससे होने वाला नुकसान मेरे लिए मायने रखता है तो निश्चित ही मैं गुंजाइश की मात्रा अधिक रखूँगा चाहे इसके लिए मुझे किसी परेशानी का सामना क्यों न करना पड़े.
गणित जरूरी है पर जीवन को गणित मै बंधा नहीं जा सकता.
मेरे कहने का यह मतलब हरगिज यह नहीं है कि मेरा मित्र गलत था. बस उसके गुंजायश रखने की मात्रा मेरे से बहुत कम थी.जहाँ में ३० मिनट का गुंजायश रखने का आदी हूँ वहां उसके लिए एक या दो मिनट बहुत थे. इसका कारण था उसका मुझसे कहीं अमीर होना. मैं जानता था कि अगर उसकी रेल छुट भी गयी तो उसे बहुत कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला. वो टेक्सी या हवाई जहाज में बैठ कर समय से पहुँच ही जायेगा.
पर मैं गरीब इतना खर्चा नहीं उठा सकता.
इसी लिए तो इतनी गुंजायश रखता हूँ.
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