योग और कला

अगर हम किसी प्रकति के द्वारा स्व-निर्मित और साथ ही मानव निर्मित रचनाओं को ध्यान से देखें तो असली नकली का फर्क तुरंत समझ आ जाता है. मशीनों से बनाई चीजें काम की हो सकती हैं, कुछ हद तक सुन्दर भी पर शायद सम्पूर्णता के भाव का अभाव रहता है. समय के विरूद्ध जाकर बनाई गयी चीजें समय के साथ बनी चीजों से भला क्या मुकाबला कर सकती हैं.

पर मानव द्वारा ही निर्मित कुछ रचनायें ऐसी भी होती हैं जिन्हें देख कर अन्दर से प्रशंसा का भाव उदय होता है. ये किसी कलाकार द्वारा बनाई कलाकृती हो सकती हैं किसी भी रूप में –चित्र, शिल्प, गीत, फिल्म या पुस्तक आदि.

अक्सर देखा गया है कि इन्हें बनाने वाले कलाकार को उस समय सराहना या प्रोत्साहन बड़ी मुश्किल से मिलता है जब व उन रचनाओं के सर्जन में व्यस्त होते है. अक्सर उनके काम को अनुपयोगी और उनके व्यवहार को सनकीपन  कह कर मजाक उड़ाया जाता है फिर चाहे वह पाब्लो पिकासो हों या लिओनिओ अर्डियोडीविन्ची .

अपनी आलोचनाओं को नज़रंदाज़ करते हुए रचनाकार अक्सर अपनी रचनाओं के सृजन के आनंद में ही डूबा रहता है. उसए लिए उसका काम एक पूजा एक आराधना होती है. संकीर्ण सामजिक मान्यताओं के बंधन में उसे बंधा नहीं जा सकता. न ही समय सीमाओं में उसकी आत्मा को कैद किया जा सकता है.


क्योंकि वह आनंदपूर्ण स्तिथि में रह कर अपना काम करता है इसलिए हर सच्चा कलाकार एक योगी हुआ क्योंकि योग का उद्देश्य ही जीवन में आनंद प्राप्त करना है.

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