सेना की यूनिट दो तरह की होती हैं.
एक तो वह जो
भूगोलीय स्थान के आधार पर होती हैं जिन्हें
static यूनिट कहा जाता है. इसमें यूनिट के कार्य क्षेत्र का दायरा एक
भूगोलीय सीमा के आधार पर होता है. यह विभाजन ठीक वैसे ही होता है जैसे पुलिस में
हर थाना किसी पुलिस जिले से, हर रहवासी किसी न किसी प्रशासनिक जिले से, और हर लैंड
लाइन फ़ोन उपभोक्ता किसी न किसी टेलीकोम जिले से जुड़ा होता है.
पर इसके अलावा एक
और तरह की यूनिट भी होती हैं जो किसी विशेष भूगोलीय क्षेत्र से बंधी नहीं होती
हैं. इन्हें mobile यूनिट कहा जाता है. हालांकि परोक्ष रूप से ये भी किसी न किसी
static यूनिट से जुडी होती हैं पर यह जुड़ाव स्थायी नहीं होता और कभी भी बदला जा
सकता है. इनका स्थान सेना के उच्चाधिकारी अपने विवेक से और सेना की जरूरतों के
हिसाब से तय करते है. इस तरह केवल यूनिट ही नहीं बल्कि से के मुख्यालय
(headquqrters) भी मोबाईल होते हैं. उदाहरण के लिए कारगिल युद्ध होने पर सेना की पंद्रहवीं
कोर का मुख्यालय श्रीनगर से कारगिल स्थापित किया गया था.
इसे लैंड लाइन फ़ोन
और मोबाईल फ़ोन की कार्यशैली के उदाहरण से भी समझा जा सकता है. लैंड लाइन फ़ोन में
जहाँ उपभोक्ता एक स्थान विशेष पर ही कार्यरत हो सकता है वहीं मोबाईल उपभोक्ता किसी
भी स्थान से सेवा का उपयोग कर सकता है क्योंकि वह अस्थायी तौर पर अपने पास की किसी
भी फोन टावर से जुड़ सकता है और जहाँ भी वह जाना चाहता है उसे फोन की सुविधा मिल
जाती है (बशर्ते वहाँ फोन का नेटवर्क हो).
कुछ इसी तरह की
कार्यशेली हमारे खुद के काम करने की भी है. हमारी भोतिक शक्तियां हमारे शरीर या तन
से बंधी होती हैं और हमारी आध्यात्मिक शक्तियां (हालाँकि हमारे शरीर में ही निवास
करती हैं ) हमारी आत्मा या मन के आधार पर कहीं से भी काम कर सकती हैं और शारीरिक
सीमाओ से परे होती हैं.
योग की तकनीक हमें
अपनी ही इन दो धाराओं में बाती शक्ति का समन्वय करके श्रेष्ठ उपयोग के लिए तैयार
करती है. अक्सार अज्ञान वश हम अपनी इन दो शक्तियों को (कई स्थान पर इन दो शक्तियों
को सांकेतिक रूप से नर और नारी शक्ति कहा जाता है) एक दूसरे के विरोध में उपयोग कर
अपना ही नुक्सान करते हैं बजाय इसके कि इन दोनों के सहयोग से एक टीम के रूप में
इनका उपयोग करें.
शायद इसी लिए आदि
योगी शिव का एक नाम अर्ध-नारीश्वर भी है.
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