जब ह्रदय प्रेम और
विशवास से भरा होता है तो जैसा है वैसा ही सुन्दर दिखाई देता है. इसीलिये अक्सर
हमें अपने प्रेमी/प्रेमिका या माँ की कमी नज़र नहीं आती.
जब ह्रदय में
घ्रणा हो तो कमियां नज़र आनी शुरू हो जाती हैं. ऐसे लोग जिसे आप बिलकुल ही पसंद नहीं करते उसके बारे में सोच कर देखिये. शायद इस
बात पर कुछ लोगों को अपना बॉस या प्रतिद्वंदी याद आ जायेगा .
हमें लगता है कि इन
बातों का trigger बाहर है. पर क्या वास्तव में ऐसा है?
क्या हमारी
भावनाओं को दूसरे लोग या परिस्थितियाँ निर्धारित करती हैं?
अपने आपको पीड़ित
दिखा कर और उससे मिलनेवाली सहानुभूति पाने के लालच में शायद हम इसका जबाब हाँ में
दे दें पर ईमानदारी से सोचने पर मानना पड़ेगा कि हमारे मन में क्या भाव या भावनाएं
रहे इसका निर्धारण हम स्वयं ही करते हैं.
विश्वास की कमी से
ही घ्रणा का जन्म होता है. इन दोनों में से एक समय में सिर्फ एक ही चीज हमारे मन
में रह सकती है जैसे अँधेरे और रोशनी में से सिर्फ एक ही चीज एक समय में उपलब्ध हो
सकती है.
जब चुनाव हमारे ही
हाथ में है तो हम वह क्यों न चुने जो बेहतर है?
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