8 दिसंबर 2016 की रात जहाँ भारत ने अचानक अपनी आर्थिक व्यवस्था से कला धन को
निकालने के लिए 500 और 1000 रूपये के करेंसी नोटों को बदलने का साहसिक फैलासला
लिया वही अमेरिका ने पहली बार एक व्यापारी डोनाल्ड ट्रंप का राष्ट्रपति के रूप में
चुनाव किया. विश्व के दो सबसे बड़े लोकतंत्र में दोनों ही फैसले अप्रत्याशित थे.
आज विश्व में जहाँ भारत सबसे बड़ा बाजार है तो अमेरिका सबसे बड़ा निर्यातक.
दोनों को ही एक दूसरे की जरूरत है और इसलिए दोनों ही एक दूसरे पर नज़र भी बनाये हुए
हैं. अब जहाँ दोनों देशों के मुखिया पैनी आर्थिक बुद्धि वाले लोग होने जा रहे है ,
नयी आर्थिक नीतियों और व्यवस्थों का निर्माण संभव है. पर जरूरत इस बात की है कि
दोनों मिलकर हथियरों के बाज़ार को बढाने से ज्यादा सोचें. मोदी जी के नारे ‘सबका
साथ सबका विकास’ के मूलमंत्र में ही आने वाले सुनहरे कल का भेद छुपा है .चीन शायद
पकिस्तान के सामरिक महत्त्व का फायदा उठाकर
इस व्यवस्था में सेंध लगाने का प्रयास करे .
क्या दो महाशक्तियों के योग से विश्व कल्याण संभव है ?
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