फर्क देख लो


 मेरा घर एक ऐसी जगह पर है जहाँ दो राज्यों की सीमायें मिलती है (या कहें बंटती है). अपनी बालकनी में बैठा मैं अक्सर सामने की सड़क पर बहता हुआ यातायात का सैलाब देखता रहता हूँ.

एक चीज जो मैंने कई बार महसूस की है कि मेरी दायीं ओर के राज्य से आते हुए अक्सर लोग इस सीमा पर आकर ठिठकते है. यहाँ आकर कार वाले अपनी सीट बेल्ट पहन लेते है और स्कूटर-मोटर-साईकिल वाले अपना हेलमेट निकालकर  पहन लेते है, ट्रेफिक लाइट तो दायी ओर वाले राज्य में भी लगी हैं पर कोई उधर उनकी परवाह नहीं करता .
पर सीमा के इस पार आते ही वही लोग बड़ी शराफत से लाल बत्ती पर रुक कर इंतजार करते है वो भी जेब्रा क्रोस्सिंग से पहले.

सीमा रेखा पर हुए इस अचानक परिवर्तन से दोनों राज्यों की कानून-व्यवस्था और नागरिकों के मन में बेठी साख का अंतर उजागर होता है.

क्या इसी तरह का अंतर कई लोगों से बात करके नहीं नजर आता? कुछ लोगों के साथ कुछ भी कह-कर गुजरो, चल जाता है वहीं कुछ लोगो से आपको सावधानी से होश में रह कर बात करनी होती है. हम अपने व्यक्तित्व के जिस पक्ष के प्रति  संवेदनशील रहते है,दूसरे भी उसका आदर करते है. हमारी संवेदनशीलता कम होते ही दूसरे भी इसका आदर करना छोड़ देते है.

अपना आदर -सम्मान हम खुद ही अर्जित करते है. दूसरों को इसका दोष देना उचित नहीं.    

चित्र -आभार - Pleasure Gait Farms

           

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