लक्षमण ने एक
रेखा खींची थी सीता को
बुरी ताकतों से बचाने के लिए .
वो तो रावण स्मार्ट निकला कि उसने इस सुरक्षा कवच का तोङ निकाल लिया. ' कहीं साधू बिना दान लिए घर से ना लौट जाय' ,सीता के मन में छिपे इस
डर कि भावना का
दुरूपयोग कर रावण ने चली थी
चाल.
जमाना चाहे कितना भी बदल गया हो ,हम सब अपनी अपनी लक्ष्मण रेखाओ से बंधे हैं और
उन्ही में जीते हैं . ये हमारी
सुरक्षा कवच भी हैं और परेशानियों का कारण भी . ये रेखाएवास्तवमें बस
मान्यताये है , हमारे दिमाग में बैठे
विचार मात्र. एक तरफ हम इनके अन्दर जीकर सुरक्षित महसूस करते है वहीं दूसरी तरफ इन्हें ढोना बड़ा झंझट का काम है. दूसरे लोग खास कर जिनका कोई स्वार्थ होता है हमें उकसाते है इन्हें तोड़ने के लिए.
कितनी अदृश्य लक्षमण रेखाओ से हम बंधे रहतें हैं और कितनियों को तोड डालते हैं. समाज,घर, परंपरा,सरकार और धर्म इनको हम पर लादते रहते हैं.
कुछ लक्ष्मण रेखाए जो अक्सर हमें बांधती है वह है-
- बचत करना
- किसी का दिल न दुखाना
- हर एक से शराफत से पेश आना
- अपनी जाति, धर्म, समुदाय आदि की परंपराये
- किसी से भी हार न मानना
- अपनी गलती हरगिज न मानना
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