अमीर-गरीब

हमारे देश/समाज में व्यक्तियों के बीच आर्थिक विषमताओं की बड़ी लम्बी खाई है. एक तरफ थोड़े से  धन-कुबेर तो दूसरी तरफ पैसे पैसे को तरसती बड़ी तादात में आम जनता. इन दोनों के बीच में झूलता है माध्यम वर्ग

यात्रा करते समय आदमी की अमीरी –गरीबी की पहचान आसानी से हो जाती है.

सही मायने में अमीर लोग हवाई जहाज़ का इंतज़ार नहीं करते बल्कि उनकी पसंद से सजाया गया जहाज उनका इन्तजार करता है. हां कुछ गरीब किस्म के अमीर अपनी हैसियत के हिसाब से और एम्प्लोयर के पैसे से बिसनिस क्लास या इकॉनमी क्लास में हवाई सफ़र करते हैं . रेल का सफ़र इन्हे कुछ ख़ास पसंद नहीं आता और इसका इस्तेमाल ये सिर्फ विदेशों में ही करते है. सड़क पर लाक्सरी कारों का बेडा हमेशा इनके इशारे का इंतज़ार करता रहता है.

माध्यम वर्ग के कुछ अमीर लोग अब इकोनोमी क्लास में हवाई सफ़र भी करने लगे हैं वर्ना ये लोग अपनी हैसियत के अनुसार रेल की सुविधा संपन्न एसी(1/2/3) क्लास में चलाना पसंद करते हैं. सड़क पर ये लोग तरह तरह की कार और कभी कभी वाल्वो बस या ऑटो रिक्शा का आनंद लेते देखे जा सकते है. 

गरीब लोग रेल के स्लीपर क्लास या अनारक्षित बोगी को आबाद करते हैं. सड़क पर ये कभी पैदल , कभी साईकिल पर और कभी (सरकारी) बस के अन्दर तो कभी उसके पीछे भागते मिलते है.

आइये देखते हैं नोट बन्दी से विभिन्न वर्ग के लोगों पर क्या असर होगा.

गरीब लगभग बीस हजार से कम मासिक आय वाले लोग ही इस देश की गरीब जनता है ( सरकारी आंकड़ों के हिसाब से 20 रुपये रोज़ या 600 महीने से कम कमाने वाला ही गरीब है). इन लोगों को 500 या 1000 का नोट वैसे ही कभी कभाद देखने को मिलता है इसलिए उन पर कोई ख़ास असर पड़ने वाला नहीं. ये लोग सरकारी मदद के आधार पर जिन्दगी जीते हैं और आयकर की सीमा में नहीं आते हैं. इनमें से अधिकतर को स्मार्ट फ़ोन और इन्टरनेट की सुविधा उपलब्ध नहीं है या उसका उपयोग करने में ये हिचकते है. बाज़ार में कैश की किल्लत और सरकारी दबाब के चलते इनमें से कुछ लोग बेंक और इलेक्ट्रोनिक माध्यमों का उपयोग करना शुरू कर देंगें. आने वाले समय में पानवाले/ गोलगप्पे वाले को paytm से खुले पैसे देना और काम वाली बाई / दूधवाले के बेंक खाते में पैसा जमा करना घर घर की कहानी बन जायेगी. इनमें से कुछ लोग लालच या मजबूरी के चलते अमीरों का काला धन सफ़ेद करने का माध्यम बनेगें. असंगठित क्षेत्र के व्यापार नियमों में बड़े बदलाव की संभावनाएं अब खुल गयी है.

माध्यम वर्ग बीस हज़ार और एक लाख के बीच महीने में कमाने वाले बीच के वर्ग पर इसकी मार सबसे अधिक होगी. इसमें भी बैंक द्वारा सैलरी लेने वाले लोग तो अप्रभावित रहेंगे पर मंझोले व्यापारी और ख़ास कर दो नंबर का हिसाब रखने वालों को खासी दिक्कत आयेगी. उन्हें मजबूरन बैंक / कार्ड या ऑन लाइन धंदा करना सीखना ही पड़ेगा. सरकार को इनके द्वारा अच्छे टेक्स की आमदनी होगी.


अमीर लाख रुपये से अधिक महीने में कमाने वालों में से अधिकतर लोगों पर विशेष असर नहीं पड़ेगा. कुछ तो इनमें से बैंक में तनख्वाह लेते है और टैक्स देते ही हैं. बाकी लोग भी चार्टेड एकाउंटेंट्स और बैंक कर्मचारियों या सरकारी कर्मचारियों के मदद से और गरीब लोगों के पहचान पत्रों के माध्यम से  अपना अधिकतर काला पैसा सफ़ेद कर ही लेंगें (या अबतक कर चुके होंगे). पिसेगे तो सिर्फ भोंदू ,आलसी और पैसे नशे में खोये हुए या उधेड़बुन में डूबे हुए वो लोग जिन्होंने बेहताशा नोट जमा कर रखे है.

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