पूर्व की संस्कृति को पश्चिम का बाजार
खा गया है
पर क्या ये इसे हज़म कर पायेगा?
या फिर इन दोनों के मिलन से
एक नए विश्व का जन्म हो जायेगा?
ये तो आने वाला वक्त ही बतायेगा
न जाने ऐसा वक्त कब आएगा
जब हमारा देखने का नजरिया
इस कदर बदल जायेगा कि
हमें बूढ़े और असहाय बाप में
कमाई न करने वाला और
एक बोझीले इंसान के बजाय
अपना जन्मदाता और पालनहारा
नज़र आएगा
जब, हमें कहाँ जाना है
इसका फैसला कोई बाज़ारी ताकत
या वेबसाइट नहीं करेगी
बल्कि अपना विवेक हमें रास्ता बताएगा
जब, अपने
मोबाईल पर उंगलियां दबा कर
बाजार से मंगाए हुए खाने से अधिक आनंद
खुद घर में बनाये हुए खाने में आएगा
और वह
पाष्टिक आहार ही
औषधि बन कर काम आयेगा
अगर ऐसा हो जायेगा
तो उस दिन हमें धरती में
ही
स्वर्ग नज़र आएगा
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